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क्या आपने फिल्म मॉंझी देखी है ? देखी ही होगी । उसमें बाबा द्वारा पहाड़ खोदते २० सैकण्ड का डायलॉग है-बाबा गुस्से से एक पत्रकार को बोल रहे हैं , “हम पागल हैं पागल । ये सही गलत का पूछ रहे हैं हमसे ? हमें तो खुद ही नहीं पता हम क्या कर रहे हैं यहॉं ? सही गलत पूछ रहे हैं ।” भले ही यह महज एक फिल्म का डायलॉग है लेकिन मेरे जीवन में पूरी तरह उतर गया है । मैं जानता हूँ कि मैं धौलपुर के पास गॉंव राजघाट में क्या कर रहा हूँ !

राजस्थान के धौलपुर जिले में १९९५ साल के जून महीने में एक दोपहरी के समय मेरा जन्म हुआ । हमारे बीहड़ में पैदा होना भी एक संघर्ष होता है । जिस वक्त मैं पैदा हुआ , अस्पताल में बिजली चली गई । जेनरेटर भी नहीं था तो मोमबत्ती की रोशनी में डिलीवरी हुई । मेरी मॉं ऐसा बताती हैं । ये धौलपुर वही है जो देश में बीहड़ और डकैतों के लिए जाना जाता है । फिल्म पान सिंह तोमर में चंबल घाटी के डकैत डाकू नहीं बागी बताए गए हैं । हमारे एरिया पर यह डायलॉग बिल्कुल फिट बैठता है । बागीपन यहॉं के हर शख्स में है , थोड़ा – थोड़ा मुझमें भी । इसीलिए संस्कृत और हिन्दी की दुनिया में मैंने स्कूल में उर्दू पढ़ी । एक जिद्दी बागी मेरे अन्दर पलता है इसीलिए राजघाट गॉंव की कहानी मेरी एक जिद से शुरु हुई ।

हुआ कुछ यूं था कि जिस वक्त २०१६ की दीवाली पर कुछ कपड़े व मिठाई लेकर मैं राजघाट पहुंचा तो सोचा नहीं था कि अब लंबी लड़ाई शुरु होने वाली है । जिस वक्त हम मिठाई बॉंट रहे थे तब ऐसी स्थिति पैदा हो गई जैसे लूटपाट और दंगई हो । लोग हमारे हाथों से सामान छीन कर ले जाने लगे । मैंने सामान दोस्तों को दिया और गॉंव में आगे निकल गया । वहॉं के लोगों से बात की तो पता चला कि इस गॉंव में इस तरह से दीवाली पहली बार मनाई जा रही है । लोगों ने ही बताया कि गॉंव में आने के लिए सड़क ही नहीं है , न बिजली और न पीने का पानी । लोग चंबल से पानी लाते हैं जहॉं मगरमच्छ और घड़ियाल रहते हैं । ऐसे ही एकदिन गॉंव वासी रघुवीर पानी भरने गया जो आजतक लौटकर नहीं आया , उसकी बीवी उसकी लाश का इन्तजार कर रही है । इन सब समस्याओं के कारण मैंने पाया कि गॉंव में ५वीं से आगे कोई पढ़ा लिखा नहीं था । लड़कों की शादियॉं नहीं हो रहीं , गॉंव बीमारियों से जकड़ा है । उस समय की दीवाली मनाकर हम लोग वापस तो आ गए , लेकिन दिमाग से गॉंव उतर नहीं रहा था ।आजादी के सत्तर साल बाद भी देश के गॉंवों की हालत ज्यों की त्यों क्यूं है । मेरे बागी मन ने ठान लिया कि राजघाट के लिए कुछ करना है । मंत्री , नेता, विभाग अधिकारी सबको पत्र लिखे लेकिन कोई जवाब नहीं आया । गॉंव के पिछड़ने का कारण कोई बता नहीं सका । हमने सरपंच को ढूंढा ,वो नहीं मिला क्यूंकि यहॉं वार्ड पंच होते हैं ।दरअसल यह गॉंव की श्रेणी में आता ही नहीं है ,यह धौलपुर नगर परिषद का एक वार्ड है । यहॉं भी कोई जवाब नहीं मिला तो समझ आ गया कि खुद ही कुछ करना होगा । अब लड़ाई शुरु हुई सिस्टम से और दूसरी खुद से । क्या मैं वही कर रहा हूं जो मुझे करना चाहिए ? इस सवाल ने थोड़ा परेशान किया लेकिन मन ने ठान ही लिया कि अब तो करना ही है । #SAVERAJGHAT कैम्पेन का जन्म हुआ । बहुत से लोग आगे आए ,गॉंव वालों ने शराब बंदी पर जोर दिया । आज गॉंव में सोलर लैम्प हैं जहॉं लड़कियॉं भी रात को पढ़ाई करती हैं । इस सबका सबसे बड़ा असर जो हुआ वो ये कि पिछले ही महीने यहॉं पूरे २२ वर्ष बाद एक लड़के की शादी पारंपरिक तरीके से हुई ।

सरकारी सिस्टम ने हताश ही किया क्योंकि यहॉं सरकारी तौर पर कुछ नहीं बदला । जो भी हुआ वह गॉंव के लोगों के सहयोग से और सेव राजघाट कैम्पेन से जुड़े लोगों की बदौलत हुआ । इस लड़ाई ने बहुत कुछ सिखाया –

सिखाईं हैं सिस्टम की खामियॉं , बदइंतज़ामी और लालफीताशाही की बारीकियॉं । यह भी अगर आप अपने दम पर कुछ अच्छा करना चाहते हैं तो सिस्टम आपको पीछे धकेलने में कोई कसर नहीं छोड़ेगा । मुझसे सवाल किए जाते थे अगर आप अच्छे हैं तो क्यों इतने अच्छे हैं ? सेव राजघाट ने मुझे एक स्टूडेंट से एक्टिविस्ट की पहचान दिलवा दी जो शायद मैं नहीं चाहता था । मैंने जो कदम उठाया वह ज्यादा नहीं है , मैंने वही किया जो एक सामान्य नागरिक की अपने समाज के प्रति जिम्मेवारी बनती है ।

#SAVERAJGHAT से मुझे बहुत कुछ सीखने को मिला । मैं समझ गया बतौर मदारी फिल्म के बहुचर्चित डायलॉग ” सिस्टम में करप्शन नहीं है बल्कि करप्शन के लिए अलग सिस्टम है । ”

हमें जो करना है वो अपने स्तर पर जल्दी शुरु कर देना चाहिए । इतनी ताकत के साथ कि बाकी लोग भी आपको देखते हुए अपने हिस्से का काम करने लगें । उदाहरण के तौर पर जब मैंने जयपुर हाइकोर्ट में सरकार के खिलाफ राइट टू लाइफ की PIL लगाई तो सरकार राजघाट में बिजली के खंभे पहुंचाने के लिए मजबूर हो गई । जिंदगी में वही करना चाहिए जो आपका दिल आपसे बार – बार करने को कह रहा है । ये बात पुरानी जरूर है पर है बहुत काम की ।

अपनी जिद के लिए बागी बन जाइए । शुरुआत में मैं एक आईएएस अधिकारी से इस संबंध में मिलने गया तो उन्होने पूछा , “अश्वनी, राजघाट ही क्यों?”मैंने जवाब दिया ,सर मैं जानता हूं कि पूरे देश में ऐसे १ लाख गॉंव होंगे लेकिन मैं मेरे हिस्से का काम कर रहा हूं ,मेरे जैसा दूसरा बागी आएगा और वो अपने हिस्से का काम करेगा ।

एक और अनुभव आपसे शेयर करना चाहता हूं । जिस दिन राजघाट में पहला बल्ब जला वहॉं के एक बुजुर्ग श्री रामचरण ने मेरा हाथ पकड़ कर कहा था , मेरा जीवन सफल हो गया । अब मैं चैन से मर सकता हूं । यह पढ़ने में भले ही आपको फिल्मी लगे लेकिन उस वक्त का अहसास मुझसे बयान नहीं किया जा रहा । कितनी अद्भुत बात है कि शुरुआत में राजघाट के लोगों ने मुझे नहीं अपनाया लेकिन अब अपने निजी प्रॉब्लम्स में भी मेरी राय लेते हैं । गॉंव में मेरे हम उम्र मेरे दोस्त हैं और गॉंव के बुजुर्गों का मैं बेटा । क्या यह कम सीख है या कमाई है ?

सबसे बड़ी सीख मेरी जो रही वो यह कि मैं समाज के उस आक्षेप से मुक्त हो गया हूं जिसमें हम युवाओं को कहा जाता है कि आप सिर्फ चाय की दुकान पर बैठकर सिस्टम को कोस सकते हैं और कुछ नहीं करना चाहते । मेरे जीवन का सबसे सुखद क्षण और बड़ी कमाई यही है । लोग कहते थे डाक्टरी की पढ़ाई छोड़कर यह काम तुम्हारा नहीं है यह नेताओं और राजनीतिज्ञों का काम है । जिन्हे लगता था मैं अपना वक्त ज़ाया कर रहा हूं कुछ नहीं बदलने वाला , वही लोग मेरे साथ इस अभियान में जुड़े हैं । इसका मतलब साफ है कि गालियॉं तालियों में बदली जा सकती हैं ।

यह भी सीखा कि आप जितना सिस्टम से डरोगे उतना ही सिस्टम आपको डराएगा । इसीलिए डटकर खड़े हो जाइए , सिस्टम आपसे डरने लगेगा । जिंदगी हरपल आपको कुछ न कुछ सिखाती है जिन्हें क्रमानुसार नहीं लगाया जा सकता । राजघाट ने मुझे एक संवेदन शील इंसान बनाया ,साथ में भारत की उस तस्वीर से रूबरू करवाया जिसे हम देखते जानते हुए भी मानना नहीं चाहते क्योंकि वह बहुत डरावनी है ।

राज घाट से बहुत कुछ सीखा मैं जो चाहता था वैसा मैंने किया और कर रहा हूं , लेकिन हमारी सरकारों को सोचना चाहिए कि स्मार्ट सिटी के साथ साथ स्मार्ट Humanity की बेहद ज़रूरत है । उस पर ध्यान दिया जाएगा तो सबकुछ Smart ही Smart होगा ।

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