सुबह-सवेरे पाँच बजे चूड़ियों की खनक, खुरपी की छप्प-छप्प, कुदाली से मिट्टी के ढलों की टूटन, पौधों को जड़ों से उखाड़ने की आवाज़, फिर धरती पर झप-झप, सब कुछ एक लय - एक गति। कुछ ऐसा जो बहुत पुरानी यादों का पिटारा खोलता सा लगा। कुछ ऐसा धरती से जुड़ा संगीत जिसे सुनकर मन प्रफुल्लित हुआ। मैं झट से उठकर…