काशी की गालियाँ घूमते-घूमते हमें तीन दिन पूरे हो गए। समय कहाँ निकल गया? कभी गंगा के घाटों पर, कभी सीढ़ियों पर, कभी हैरान कर देने वाली संकरी गलियों में। पुरानी हवेलियों, भवन जिनमें दादा-परदादा के ज़माने से बसे परिवार देखे। परिवारों के बीच बन गयी दीवारें, सबने अपनी-अपनी आवश्यकता के अनुसार संयुक्त से एकल की परिभाषा सीख ली। हवेलियों…
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काशी लाभ 'मुक्ति भवन' के दर्शन करने के बाद दीपक ने डायरी से नया पता निकाला मुमुक्षु भवन, आनंदबाग़, भेलुपुर वाराणसी। काशी के घाटों की चहल -पहल हम बहुत समीप से देख चुके थे। सभी घाट गंगाजी में उतरते हैं और चंद्राकार बहती हुई गंगाजी उत्तर की तरफ़ मुड़ जाती हैं। काशी प्राचीन काल में दो नदियों के बीच बसायी…
चारों तरफ़ खिली धूप और सन १९०८ की बनी दोमंज़िला इमारत जो जीवन के सत्य की साक्षी है। उसके दरवाज़े हर पल, हर घड़ी खुले हैं। हवा के झोंके की तरह शरीर के बंधन में उलझी अात्मा यहाँ आती है। कुछ गहराती सांसें, अवचेतन मन, साथ छोड़ता शरीर और सही मौक़ा पाकर अनंत में विलय। सब कुछ सहज धरती से…
"काशी मरत मुक्ति करत एक राम नाम महादेव सतत जपत दिव्य राम नाम प्रेम मुदित मन से कहो राम राम राम श्री राम राम राम श्री राम राम राम".... बचपन में बड़ी बहन की मधुर आवाज़ में यह भजन बहुत बार सुना था। इसकी राम धुन सहज ही आकर्षित करती थी। उस समय काशी को हम ऐसे तीर्थ स्थान की…