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आपको अपने बचपन वाले जन्मदिन याद हैं ?
वो आज कल के जन्मदिन से बहुत अलग हुआ करते थे। ये ख्याल मुझे अपने जन्मदिन पर आया जब मैं अपनी भतीजी से मिली। उसका नाम आस्था है। वो मुझे शुभकामनाएं देकर बोली, बुआ ! आप बर्थडे नहीं मनाओगी क्या ?”
मैंने कहा, “नहीं आस्था ! टाइम कहाँ है ? सुबह से शाम तक क्लास चलती है। “
आस्था बोली, “मैं तो बहुत उत्सुक हूँ बुआ ! मेरा भी तो बर्थडे आ रहा है, कुछ अच्छा सा गिफ्ट लेकर आना। “
मैंने पूछा, ” इस बार कुछ ख़ास है या तुम हमेशा ही इतना इंतज़ार करती हो अपने जन्मदिन का ?”
आस्था हंसकर बोली, “बुआ ! मैं अभी बस 10 वर्ष की हूँ, आप बड़े लोगों की तरह थोड़ी हूँ जो अपना बर्थडे तक अच्छे से नहीं मनाते, मुझे तो बड़ा मज़ा आता है।”

आस्था की बातें सुनकर मैंने आलमारी से पुराने एलबम निकाले और तस्वीरें देखकर मन हुआ कि काश वापिस बच्ची बन जाती। बचपन वाले जन्मदिन की बात अलग ही होती थी, दस दिन पहले, अरे नहीं, मैं तो महीने भर पहले से सारी प्लानिंग करने लगती थी। क्या कपड़े पहनने हैं, कौनसा केक आएगा, तोहफा क्या चाहिए, खाने में क्या बनेगा और भी बहुत कुछ। एलबम्स देखते ही मानों मेरे अंदर का बच्चा वापिस जाग गया हो, हज़ारों ख्याल आ गए और दिल-दिमाग से सारी फिक्र मानो गायब हो गई। 


हम “नन्हें से थे पर ज़िंदादिल थे” लेकिन जैसे-जैसे हम बड़े हुए सिर्फ जन्मदिन ही नहीं मानों हर चीज़ में हमारी रूचि कम हो गई। जैसे त्यौहार मनाना, दोस्तों संग बैठना, परिवार संग घूमना इत्यादि। अधिकतर लोगों में जो एक उत्सुकता होती थी वो मानों रह ही नहीं गई है। शायद यही कारण है कि जब कोई हमसे पूछता है, “ज़िन्दगी कैसी चल रही है ?” तो हमारा जवाब होता है, ” बस, कट रही है।” क्योंकि ज़िन्दगी जीना किसे कहते हैं ये हम में से अधिकतर लोग भूल ही गए हैं। 


अब आप बोलोगे कि इतनी ज़िम्मेदारियाँ हैं, ज़रूरतें हैं कि इन सब को कहाँ समय दे पाते हैं। जिसमें सबसे बड़ी दिक्कत है ‘अनावश्यक प्रतिस्पर्धा ‘। इस तेज़ भागती दुनिया में हम बेफिज़ूल ही दूसरों से आगे निकलने की दौड़ में अपनी ज़िन्दगी का उत्साह, सुकून, खुशियां सब दांव पर लगा देते हैं। नतीजा ये होता है कि हम ज़िन्दगी जीना भूल जाते हैं।

गुलज़ार साहब ने कहा है, “अपने अंदर के बच्चे को ज़िंदा रखिये साहिब, हद से ज़्यादा समझदारी ज़िन्दगी को बेरंग कर देती है “
क्या हम एक बेरंग ज़िन्दगी जीना चाहते हैं ?
आपका जवाब होगा, “बिल्कुल नहीं!”


हम सब यही चाहेंगे न कि जब वृद्धा अवस्था में हों तो बीते दिन याद करके हंस सके, न कि ये सोचें कि ज़िन्दगी बस भागने में निकाल दी, जीना तो रह ही गया। जन्मदिन का किस्सा तो सिर्फ एक उदाहरण था आपको ये याद दिलाने के लिए कि ज़िन्दगी बहुत खूबसूरत और रंगीन है । अपने आस-पास देखिये, खुश होने के बहुत से तरीके हैं, जैसे आसमान में उड़ते पक्षी, बादलों में बनते चित्र, उगता हुआ सूरज, चेहरे को छूती हवा, सुन्दर सा खिला फूल, मुस्कुराते हुए बच्चे, जैसी अनेकों चीज़ें हैं जो आपकी ज़िन्दगी में रंग भर सकती हैं।
अभी भी समय है साहिब, ज़िन्दगी काटना नहीं जीना शुरू कर दीजिये !

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