यह लाइन "बादल पे पांव हैं" सुनते ही लगता है, जैसे किसी ने आज़ादी की ऊचाइयां छू ली हों| ज़रा सोचिए, अगर ये आज़ादी किसी लड़की या महिला ने चखी हो ? हाँ, एक लड़की जिसे हम हमेशा सुरक्षा देना चाहते हैं, उसे हर खतरे व मुसीबत से दूर रखना चाहते हैं । इन सब बातों के बीच हम उन्हें…
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क्या आपने कभी सोचा है कि पहले कैसे हम दिल्ली जैसे शहरों में भी आसानी से रास्ते याद रख लेते थे? लेकिन आज के समय में बिना गूगल मैप के छोटे रास्ते भी याद नहीं रहते। माना गूगल मैप लम्बी दूरी तय करने में, या फिर अनजानी जगह पहुंचाने में काफी मददगार है। लेकिन इसकी वजह से हमने अपने दिमाग…
पर्वतीय क्षेत्रों की सैर कर के आए लोगों से अगर आप पूछें कि क्या देखा ? सभी प्राकृतिक सौंदर्य के वर्णन के साथ अनायास कह उठते हैं पहाड़ों पर पहाड़ों को जीतती पहाड़ी स्त्रियों को काम करते देखा। इसमें कोई दो राय नहीं है कि पहाड़ों का चप्पा - चप्पा अगर किसी से परिचित है तो वह हैं यहाँ की…
क्या आपने फिल्म मॉंझी देखी है ? देखी ही होगी । उसमें बाबा द्वारा पहाड़ खोदते २० सैकण्ड का डायलॉग है-बाबा गुस्से से एक पत्रकार को बोल रहे हैं , "हम पागल हैं पागल । ये सही गलत का पूछ रहे हैं हमसे ? हमें तो खुद ही नहीं पता हम क्या कर रहे हैं यहॉं ? सही गलत पूछ…
जीवन में हम कभी ना कभी किसी और से प्रभावित होते रहे हैं। कभी ये प्रेरणा हमें सही दिशा भी देती है और कभी ग़लत राह पर भी मोड़ देती है। इसलिए जीवन को आसान या कठिन बनाना हमारे नज़रिए पर निर्भर करता है। आप जीवन में बहुत कुछ कर सकते हैं इतना जितना आप सोच भी नहीं सकते। गीता…
मेरे विचार से समस्त विश्व में ऐसा कोई व्यक्ति नहीं होता जो अपने जीवन में सफल नहीं होना चाहता। सब सुखी जीवन की ही कामना करते है। हम ही नहीं हमारे शुभेच्छु अर्थात हमारे माता-पिता, शिक्षक, भाई, बंधु, सखा सभी हमें सुखी रहने का आशीर्वाद व शुभकामनाएँ देते हैं किंतु सुख व समृद्धि का माप दंड क्या है? क्या सबके…
देखो, फिर आया वसंत सरसों फूले दिग दिगन्त धानी चादर, पीली बहार अम्बर गूँजे, चली बयार, देखो फिर आया वसंत...बढ़ गई धरती की शोभा अनंत....। भारतवर्ष को षट्ऋतुओं का उपहार प्रकृति ने दिल खोलकर दिया है। वसंत ऋतु का नाम ही प्रकृति में आनेवाले सुखद बदलाव का प्रतीक है। सूखी टहनियों में निकलते नए हरे-हरे कोंपल। खेतों में लहलहाते सरसों…
जिसकी नज़्मों में अहसास इतनी नज़ाकत के साथ सिमट जाता हो कि जैसे चॉंदनी में छिपी आफताब की किरणें। जिसने ज़िंदगी के हर लम्हे को अपनी कायनात में सितारे सा पिरो लिया हो ताकि जब उसका ज़िक्र आए तो वो नज़्म बनकर उतर आए। जिसका बचपन मिट्टी की सौंधी ख़ुशबू से लबरेज हो और दिमाग़ के कोने में अपनी ख़ासी…