सौड़ : ग्रामीण परिवेश में उभरी जीवन शिक्षाएँ

सौढ़ का प्राकृतिक सौंदर्य इतना रमणीय है कि कुछ समय तो मन अभिभूत धन्यवाद के अन्दाज़ में ही रहा। धन्यवाद समय को, धन्यवाद परिजनों को, धन्यवाद उन गुरुओं को जिन्होंने इस सुंदरता को आत्म सात करने के लिए निगाह तराशी।
गॉंव वालों का अपनापन ऐसा था कि हम सब एक परिवार की तरह उठ -बैठ, खा-पी, रहे थे। वो थोड़े से सदस्य और हमारा अच्छा ख़ासा कंटिंजेंट। सब हमारे और हम सबके की भावना के साथ समय भाग-सा रहा था। सुबह-सुबह उठकर पूर्णिमा, लैला, दीपक, साबित बेड़ गॉंव चले जाते और उस दिन की चित्रकारी की प्लानिंग करते। नाश्ते के समय सब मिलकर नाश्ता करते और पेंट, कूँची के डिब्बे सम्हाल सब चल देते नीचे घरों की ओर। हमारे कार्य को सभी गॉंव वाले बहुत सराहते, ख़ुद भी तैयार रहते कि कहाँ मौक़ा मिले और लगाएँ कूँची से दीवारों पर हाथ। सभी को पेंट करना आता है क्यूँकि सभी अपने घरों में दिवाली के आस-पास पुताई का काम करते हैं।
हमारे लैपटॉप के संगीत में डूबे सभी वॉलंटीयर बहुत आनंद लेकर चित्रों में रंग भर रहे थे। गॉंव वालों की दिनचर्या भी बख़ूबी चल रही थी। खेतों में हल, घास की गुड़ायी, छेमियों की बुवाई, सब्ज़ियों की पौध सब लग रही थी। हमने भी बीच-बीच में घास काटनी सीखी। हमारे आने से गॉंव वालों में नया उत्साह और उमंग ज़रूर संचारित हुआ क्यूँकि इतने व्यस्त रहते हुए भी हम सब चाय के समय गीताजी के घर कभी भुने आलू, कभी पकोड़े, कभी पॉस्ता, कभी पतोड़ गागले खाने बैठते ही थे। चौपाल की तरह सब अपनी-अपनी राम कहानी ज़रूर सुनाते। वहीं पता चला कि पानी के गदेरे के पास बाघ देखा गया। पूर्णिमा ने पॉंच घरों की दीवारों पर एक विशाल बाघ बना डाला। उस पर चित्रकारी करने नई टिहरी से आइ.टी.आइ की टीम आई। इस बाघ की प्रेरणा गॉंव में प्रचलित एक पौराणिक कथा है।
एक दिन अचानक मौसी की तबियत बहुत ख़राब हो गयी। शाम को हमें पता लगा तो सब उनकी छत से उतर नीचे दालान में पहुँच गए। ब्लड प्रेशर बहुत हाई था। सबने अपनी-अपनी तरह से उन्हें रिलीफ़ देने का प्रयास किया। सबकी ही मान्यता थी कि मौसी काम अपनी बिसात से बहुत ज्यादा करतीं हैं।
रात होते-होते मौसी काफ़ी ठीक हो गयी थीं ऐसे ही किसी प्रसंगवश बोलीं, जब मनुष्य जीवन लिया है तो काम तो करना ही चाहिए। एक ही जगह बैठकर कौन सुख की रोटी खा सका?
अचानक से कुछ अन्दर तक उतर गया। क्या विद्यालय की शिक्षा ही इंसान को समझदार बना सकती है? जिनको ये सुविधा नहीं मिली वो जीवन के अनुभव से सीख जाते हैं। सरल साधारण दिखने वाला इंसान भीतर से महाज्ञानी हो सकता है। जीवन का अनुभव ही सबसे बड़ा गुरु है। वही शिवत्व है जो जीवन की अग्नि परीक्षा से मन, बुद्धि, आत्मा का विकास करता है।
गॉंव वालों का जीवन ध्यान से देखें तो पाएंगे कि सब स्वयं सिद्ध ‘महाजुगाड़ू’ होते हैं। सब कुछ उन्हें अपने संसार में ही उपलब्ध है। इंसान ने नए-नए अाविष्कार कर अपनी ज़िंदगी उत्पाद उपभोक्ता के रूप में क़ैद कर ली। यहाँ क्या कमी है?
फ़्रिज, AC, स्वांकी लम्बी गाड़ियों की यहाँ आवश्यकता ही नहीं है। प्राकृतिक मौसम आधी से ज़्यादा परेशानियाँ हर लेता है। खेतों में ख़ुद का उगाया अनाज इतना स्वादिष्ट बनता है कि बड़े से बड़े शेफ़ डि connoisseur ऐसा स्वाद नहीं भर सकते। जो इंसान जहाँ जन्मा है प्रकृति के उपहार स्वरूप अच्छा जीवन जीने के लिए सब कुछ वहीं उपलब्ध हो जाता है। ताज़े पानी का स्रोत पास में ही बह रहा है। पेड़ फलों से भरपूर हैं। सभी पशु मौसम अच्छा होने से स्वस्थ दिखायी दिए।
प्रोजेक्ट फ्युएल का विश्वास है कि हर मनुष्य अपने जीवन में कुछ ना कुछ सीखता ही रहता है और जीवन भर उस पर अमल करने का प्रयास करता है। दीपक ने मई १५ तारीख़ से गाँव के सभी मूल निवासियों से मिलकर उनका औपचारिक साक्षात्कार लिया और सभी से गाँव के जीवन की ख़ुशनुमा यादें और उनके जीवन की शिक्षाएं भी एकत्रित कीं।
वह सभी पृष्ठ मेरी आँखों के सामने तैरने लगे। अधिकांशत: स्त्री, पुरुष, बच्चों ने शिक्षा के महत्त्व को स्वीकारा है।
श्री बालम चंद्र रमोला और जैपाल सिंह नेगी ने पहली बात- खरी बात ‘अच्छी पढ़ायी’ मानी। उनके जीवन में शिक्षा बारहवीं तक ही रह गयी थी। इसकी वजह से वे अपने को बहुत समय तक पढ़े लिखों के सामने कम मानते रहे।
इसलिए बच्चों को अच्छी शिक्षा मिले इस पर बहुत ध्यान दिया। ऐसे ही घरेलू स्त्रियाँ जो स्कूल पाँचवीं तक ही पढ़ पायीं। उन सभी ने बच्चों के उज्ज्वल भविष्य का आधार शिक्षा ही माना। श्रीमती सीमा रमोला, मुन्नी देवी, रीना रमोला के लिए बच्चों का स्कूल में मन लगाकर पढ़ना ज़रूरी है। नोट करने की बात यह है कि इस गाँव के अधिकतर निवासी रमोला हैं। सभी सौड़ से निकल कर ज़री पानी, काना ताल, ढांग धार, सन गॉंव, अंधियार गढ़ी, पाटल देवी आदि चम्बा तक जा बसे हैं।
दीपक ने बड़ी लगन से घर-घर का इतिहास, सदस्यों की संख्या, उनकी कला-कौशल सबका डेटा बेस बनाया। लोगों की जीवन शिक्षाओं से एक बात बहुत अनोखी बात समझ आयी कि सबके जाने के, दूर सड़क के पास बसने के लगभग एक जैसे ही कारण थे पर जो ख़ुशहाली गॉंव में थी जहाँ लहलहाते खेत थे, मवेशियों के स्थान थे, आपसी भाईचारा था, इज़्ज़त थी वैसा माहौल दुबारा नहीं मिला। सभी को शहर की अति उपभोक्तावादी जीवन शैली ने एक दूसरे से दूर कर दिया।
श्रीमती रोशनी देवी ५० वर्ष ने बहुत ही सुन्दर शिक्षा समझायी। संसार में सबसे उत्तम सम्पत्ति अपना घर और अपनी ज़मीन है। जिसके पास ये दो साधन हैं वह राजा की स्थिति में है। आप अपने घर में कम खा कर जी सकते हो। किराए के मकान में तो आप दीवारें भी बिना पूछे नहीं छू सकते।
श्री बालम चंद रमोलाजी ने पुरानी यादें ताज़ा करते हुए कहा कि गाँव में एक ही पंचायत का रेडिओ था जिसमें आकाशवाणी लखनऊ से गढ़वाली गीत आते थे। हम सब बैठकर सुनते थे।
शिक्षा जीवन का मुख्य आधार है।
श्री जयमल सिंह नेगी ने अनूठा वक्तव्य दिया,”जिसने सारा उसने नहीं हारा।”
जिसने काम किया वह हमेशा आगे बढ़ा। पहले लोग या तो खेतों में काम करते थे या फौज में भर्ती हो जाते थे।
श्रीमती रामदेवी रमोला, मनुष्य जीवन सबसे अच्छी योनि है। आप दूसरों की देखभाल, इज़्ज़त, प्रेम कर सकते है और अपनी भावनाओं पर क़ाबू पा सकते हैं।
श्रीमती सोना देवी ७० वर्ष ने कहा:
अपनों की सुख -शांति के लिए प्रार्थना करो।
श्रीमती सुरमा देवी ने कहा:
मनुष्य को मनुष्य बने रहना चाहिए। मनुष्य के गुणों के बिना जीवन पशु समान है।
इस तरह की तक़रीबन डेढ़ सौ जीवन शिक्षाएँ हम समेट लाए।
इन सब को पढ़कर जो सामने आया।
मनुष्य का मानसिक विकास सभी स्थानों पर बख़ूबी होता है। गॉंव में रहने वाले कम समझदार नहीं होते।
सरल स्वभाव के होने के कारण उन्हें बनावटी बातों से कोई सरोकार नहीं होता।
जीवन जीने के लिए हर प्रकार के उपक्रम सुविधाएँ सब जोड़ लेते हैं।
प्रकृति के बहुत निकट जीने के कारण सबको सब कुछ वहीं उपलब्ध हो जाता है।
सहज जीवन सीखने के लिए शहर वाले इधर-उधर भटकते हैं।
गॉंव चले आइए, सहज जीवन अपने-आप ही मिल जाएगा।