Top Menu

इस वर्ष अगस्त में मुझे देहरादून के शांत सुरम्य वातावरण में स्थित ऐन मैरी स्कूल ने आमंत्रित किया। देहरादून मेरा घर है। मैं बहुत प्रसन्न हुआ। जिस दिन मेरी workshop शुरू हुई, उस दिन वहाँ तक़रीबन १२० अध्यापिकाएं थीं। उनके चेहरे पर मधुर स्मित मुस्कान दिख रही थी। भ्रमित भाव-भंगिमाएँ और फुसफुसाहटें तैर रही थीं। ऐसा मुझे बहुत बार देखने को मिला है इसलिए मैं इन प्रतिक्रियाओं का आदी हूँ। मेरी उम्र और मेरी स्कूल छात्र जैसी छवि लोगों की भवें आश्चर्य में डालती ही हैं। इसलिए मैं इसमें भी आनंद लेता हूँ। माहौल में बोझिल गम्भीरता से हँसी मज़ाक़ बेहतर होता है। मैंने शिक्षकों के साथ एक दूसरे से परिचय लेते हुए सेशन आरम्भ किया और सबसे उनकी अपनी विशिष्टता बताने को कहा जो वे दूसरों से बाँटना चाहेंगे।मुझसे तीसरी पंक्ति दूर श्रीमती चन्द्रलेखा सिंह बैठी थीं जो वहाँ अंग्रेज़ी पढ़ाती थीं। उनके बाल सफ़ेद और निगाहों में चमक थी। उनकी आवाज़ में story teller जैसी कशिश थी। अपना नाम बताने के बाद उन्होंने कहा,”मैं अपने क्लास रूम में बच्चों के साथ रहना बहुत पसंद करती हूँ। उनका संसर्ग और कौतुहल मुझे ऊर्जा देता है बस यही बात मैं सबसे शेयर करना चाहती हूँ।”

यह बात सोमवार शाम की है।
अगले ही दिन श्रीमती सिंह अपनी कक्षा में बच्चों के बीच दिल का दौरा पड़ने से दिवंगत हो गयीं।

मुझे यह ख़बर बुधवार को मिली, जब मैं कक्षा ११ के साथ वर्कशॉप करने दुबारा स्कूल गया।सब कुछ बहुत अकस्मात् ही हुआ, जब मैं घर आया तो श्रीमती सिंह के अंतिम शब्द मेरे जहन में बार-बार कौंध रहे थे। मैं उनके साथ अपने ख़ुद के टीचर होने के अस्तित्व के विषय में सोच रहा था। स्कूल में मुझे उनकी अन्य विशेषताएँ भी सुनने को मिली थीं। उनके विद्यार्थी उन्हें बहुत पसंद करते थे।

मैंने केवल १७ वर्ष की आयु से ही शिक्षण का कार्य शुरू कर दिया था। इसके ज़रिए मैं पूरे देश में घूम चुका हूँ। इन दिनों को मैंने बहुत आह्लाद व उमंग के साथ बिताया है। अब तक तक़रीबन ४० हज़ार लोगों जिनमें पाँच वर्ष से लेकर ९६ छियानबे वर्ष के बुजुर्ग भी शामिल हैं, को ख़ूब मज़े के साथ पढ़ाया है। मैं जितना एक शिक्षक की तरह सोचता हूँ उतना ही पाता हूँ कि तीन साधारण सी बातों ने मुझे शिक्षण की कुशलता में बहुत सहायता की है।

श्रीमती चन्द्रलेखा सिंह को समर्पित करते हुए मैं वे विशेषताएँ आपसे साझा करना चाहता हूँ।

पारदर्शी बनें:
अपने विद्यार्थियों के सामने अपनी ग़लतियों, असफलताओं और कमियों को स्वीकारें इससे उन्हें आप जीते-जागते इंसान लगेंगे नाकि आधिकारिक तंत्र।जब आप सच्चाई से अपनी सफलताओं या असफलताओं की बात करेंगे तो वे आपमें अपनी छवि देख सकेंगे और आपकी बात अच्छी तरह समझ सकेंगे।
जब एक अध्यापक ख़ुद बच्चों को बताता है कि उसने भी कक्षा में बहुत कम नम्बर पाए हैं, पिक्चर देखने के लिए स्कूल से छुट्टी मारी है या समय पर होम्वर्क करके नहीं दिया है तब बच्चा इसमें सब कुछ अपने जैसा देखता है और टीचर से खुलने लगता है।मित्रता के भाव के साथ उसे पढ़ाना आसान हो जाता है। पारदर्शी रहने से आपकी उपस्थिति में बच्चा सहज रहता है। अगर आप अपनी कहानी में उन्हें भागीदार नहीं बनाएँगे तो वो भी अपनी कहानी में आपको भागीदार नहीं बनाएँगे। ऐसी स्थिति में उसके जीवन पर आप अपनी अमिट छाप नहीं छोड़ पाएँगे।

सदैव उत्साहयुक्त रहें :
उत्साह का कोई विकल्प नहीं है।
मैं कभी भी कक्षा में गुड मॉर्निंग का राग नहीं अलापता जो अधिकतर विद्यार्थी टीचर को देखते ही गा उठते हैं। इसकी जगह मैं बुलंद आवाज़ में, Hi! बोलता हूँ। यह आज के संदर्भ में सुन्दर अभिवादन है जो विद्यार्थियों में प्रचलित है। उन्हें मैं अपने जैसा लगता हूँ ,उन्ही की पीढ़ी का। बुझी हुई आवाज़ और भावहीन चेहरे वाला टीचर कभी किसी का ध्यान आकर्षित नहीं कर पाया।
स्कूल में मेरी एक पसंदीदा टीचर जब भी मुझसे मिलती थीं हमेशा मुस्कुराकर कॉम्प्लिमेंट देती थीं और मेरा अभिवादन स्वीकार करती थीं। मैं अपने उस समय के अनुभव को आजतक नहीं भूल पाया।
महान अमरीकन लेखक टोनी मोरिसन ने बहुत सुन्दर लफ़्ज़ों में पूछा,” क्या तुम्हारा चेहरा बच्चों को देखकर रौशन हो जाता है? क्यूँकि तुममें वे यही देखना चाहते हैं ।”

विद्यालय का पाठ्यक्रम तो कोई भी ख़त्म करवा सकता है। परीक्षा लीजिए और उत्तर पुस्तिका जॉंचिए पर आपकी पदवी एक टीचर के रूप में बहुत महत्त्वपूर्ण है क्यूँकि आप जाने या ना जानें आप बच्चों के आदर्श या रोल मॉडल ज़रूर होते हैं।एक उत्साही अध्यापक ऐसे शिष्य तैयार करता है जो सदा जोश और आशा से भरे बगूले होते हैं और संक्रात्मकता की हद तक सकारात्मक ऊर्जा से भरे रहते हैं।
अगर मेरी मानी जाय तो मैं चाहूँगा कि जब-जब एक बच्चा ऐल्जेब्रा का इक्वेज़न ख़ुद से हल करे या कोई अनोखा प्रश्न पूछे तो अध्यापक ज़ोर से युरेका अनाउन्स करे, उसका अभिनंदन करे। आपको विद्यार्थी इतने दिन याद रखेंगे जितना आप कल्पना भी नहीं कर सकते।

विद्यार्थियों को एक सार्थक जीवन जीने में मदद करें:
William Upaski के अनुसार –
“अगर मित्रता बढ़ाने, सरकारी तंत्र के अफ़सरों तक पहुँचने, संगठन बनाने,भलाई के लिए पैसा एकत्रित करने, डेटाबेस बनाने, घर ख़रीदने, बच्चों की परवरिश, धोखाधड़ी से बचने, किसी को आत्महत्या से बचाने और ख़ुद के लिए महत्त्वपूर्ण मुद्दों को समझने की शिक्षा दी जाए तो ज़्यादा भला होगा।”
यही कारण हैं जिनसे लोग ज़िंदगी बनाते हैं या ख़राब करते हैं, नाकि ऑल्ज़ेब्रा की equations समझ के या साहित्य की व्याख्या करके।

शिक्षण का उद्देश्य कभी भी बच्चों को अच्छे मार्क्स दिलाने का नहीं रहा है, लेकिन उन्हें वे क्षण समझाने का है जब बच्चा ख़ुद अपने अंदर की प्रतिभा का चमत्कार समझ सके।प्रेम में दिल टूट जाने पर समझदारी दिखाना, किसी बिलियन डॉलर स्वप्न का टूट जाना और बड़ी भारी सफलता को गरिमापूर्वक स्वीकारने में और अपने अकेलेपन में आनंद का अनुभव लेने जैसे विषयों को समझना भी उतना ही आवश्यक है जितना वर्ल्ड वार २ या क्रॉस पॉलिनेशन को समझने का।

अधिकांशतः बच्चे अपने टीचर को बहुत ध्यान से देखते-परखते हैं क्यूँकि बच्चों के विस्तृत होते संसार के प्रश्नों के उत्तर उन्ही के पास होते हैं। यह तभी सम्भव होता है जब टीचर बहुत तत्परता से उनकी ज़रूरत की पूर्ति करता है, उन्हें एक अच्छा इंसान बनाने में मदद करता है। एक अपनत्व भरे टीचर का उद्देश्य तभी पूर्ण होता है।

बहुत वर्षों बाद मिला शिष्य आपसे कभी नहीं कहेगा कि धन्यवाद, अापने मुझे कक्षा दस में १०० प्रतिशत अंक दिलवाए, बल्कि आपकी सहृदयता के लिए या बहुत प्रभावी कहानियों के लिए या समय पर मिली मदद के लिए धन्यवाद ज़रूर देगा जिससे उसके जीवन में नया मोड़ आया हो।

हालाँकि मैं श्रीमती सिंह से सिर्फ़ एक बार ही मिला पर मैं समझा कि उनमें बहुत सी विशिष्टताएँ थीं जो मैं इन तीन बिंदुओं में नहीं समा सका, उन्होंने अपने २३ वर्ष के अध्यापन काल में इतना प्रभाव डाला था जो मैं अपने अंदर हमेशा के लिए संजोना चाहता हूँ ।

सभी शिक्षकों के लिए:
अपने विद्यार्थियों के सामने अपना सर्वोत्तम संस्करण रखें।
जब आप सीखते हैं तो सितारे की तरह चमकते हैं और जब आप पढ़ाते हैं तो आप ज्ञान की आकाश गंगा बन जाते हैं।

Comments

comments

About The Author

Deepak Ramola, Founder and Artistic director of FUEL is a life skill educator at heart and in practice. With his initiative Project FUEL Deepak travels across the continent with people's life lessons designed as interactive and performance based exercises. He is also a gold medallist in BMM from the University of Mumbai, a spoken word poet, an actor, a lyricist and a writer.

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

You may use these HTML tags and attributes: <a href="" title=""> <abbr title=""> <acronym title=""> <b> <blockquote cite=""> <cite> <code> <del datetime=""> <em> <i> <q cite=""> <s> <strike> <strong>

Powered By Indic IME
Close