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रेखाओं की तरह खिंची चमकती ऑंखें, चेहरे पर गहरी लकीरें, व्हील चेयर पर बैठे इस शख़्स में कुछ एेसा था जिसने हमारा ध्यान खींचा। हमने उनके पीछे खड़े साथी से बातचीत शुरु की। उन्होंने बताया जीवन में घटनाएँ अचानक ही घटती हैं, सिर्फ़ हमें उनके साथ समझौता करना आना चाहिए। हमने उनसे पूछा,”आपने अपने जीवन में आनेवाले परिवर्तन से क्या सीखा?” श्री दुआनदुएन का एक हाथ और एक पैर ऊँचाई से गिरने के बाद लगभग सुन्न पड़ गया था। वे आजकल एक बहुत बड़ी कम्पनी में आर्थिक सलाहकार के पद पर काम कर रहे हैं। उन्होने कहा कि किसी भी दुर्घटना के बाद अपने आप को असहाय नहीं समझना चाहिए। मन को संकल्पित करके हमें लक्ष्य बना लेना चाहिए। हम सभी के आसपास बहुत से एंजेल्स घूमते रहते हैं बस हमें उन्हें पहचानना आना चाहिए। मेरे माता-पिता तो नहीं थे पर मेरे जीवन में मेरी विधवा ऑंटी ने बहुत हिम्मत बंधाई और परिवार के लोगों को जोड़ा ताकि मैं अकेला महसूस न करूँ । आज मैं सहायक के बिना भी अपने को अच्छी तरह सम्हाल सकता हूँ और कहीं भी घूम सकता हूँ। दृढ़ इच्छा शक्ति से इंसान बहुत कुछ बदल सकता है? हम हांगकांग के क्लॉक टॉवर के सामने इस इंसान के आगे बौना महसूस कर रहे थे।

प्रोजेक्ट फुएल का मक़सद भी देश से बाहर की सभ्यताओं को जानकर उनके कुछ गुणों को अपनाकर अपने जीवन सार एकत्र करने का मौक़ा ढूँढना है। प्रोजेक्ट फुएल ज़हन में लिए हम हांग कांग घूमने गए। जहाँ-तहाँ स्त्री पुरुष, युवा पूरी सज-धज के साथ सड़कों पर घूमते मिले… Always up to date …..पर अंग्रेजी बोलने में झिझकते। कहीं हमें लगा सब कुछ मशीनवत सा…..अपने में गुमे हुए लोग। सबके सब मोबाइल में उलझे, लम्बी सी selfie stick और उस पर लटके मोबाइल से ऐसे फ़ोटो खींचते ….जैसे ,रुको! ये क्षण कहीं यादों के झरोखों से सफ़ेद कबूतर की तरह ओझल ना हो जाए।

मेट्रो में, बस में या टैक्सी में जहाँ कहीं दिखती भीड़, सब मोबाइल में आँखें टिकाए। नन्हें बालक मोबाइल पर गेम खेलते देख मन सोचने पर मजबूर हुआ क्या ये बच्चे अन्य सोसायटी के बच्चों के साथ क्रिकेट, फ़ुट्बॉल, छूपम छूपायी, खेलते होंगे? पेड़ों पर चढ़ना या कान पत्ता जैसे खेल इन्होंने सुने ही ना हो, सभी तो अल्ट्रा माडर्न। पसीने से भीगे लाल चेहरे और हाथ में बॉल या बैट लेकर लड़ते-झगड़ते बच्चे नदारद थे। आस-पास सब कुछ इंसानी wonders……….

नए हांग कांग को नया रूप देने के लिए कड़ी मेहनत और सूझबूझ लगायी गयी है और बनाने के बाद उसे वैसा ही रखने का प्रयास चलता रहता है हमने समझा और सीखा, किसी भी स्थान को नया रूप देना आसान है पर वैसा ही बना के रखना उससे भी ज़्यादा महत्वपूर्ण।

जगह की कमी और लोगों की दिन पर दिन बढ़ती आबादी हांग कांग की मजबूरी है। बच्चे इलेक्ट्रॉनिक गैजेटस पर ही खेलते हैं हमने भारतीय बच्चों से पूछा कि जब आप भारत वापस जाते हैं तो वहॉं आपको क्या अच्छा लगता है? चार पंक्तियों के जवाब में अधिकतर ने लिखा …..हमारा गाँव, खेत, ट्यूब वैल…..दादी, दादाजी, दोस्त, हमारा झण्डा, २६जनवरी, क्रिकेट। एक ने कहा आण्टी वहॉं की शादियॉं, बैण्ड बाजा।एक बच्चे ने तो ड्राइंग में मुंबई के कौवे बना दिए जो हांग कांग में दिखाई नहीं देते। सही है, देश से बाहर रहने वालों को देश की क़ीमत जल्दी ही समझ आ जाती है।

हांग कांग की सड़कें बहुत ऊँची-नीची हैं। शहर के बीचों-बीच ये स्थान बहुत से विदेशी रेस्ट्रांस से घिरा हुआ है। कॉरपोरेट वर्ल्ड की गहमा-गहमी यहाँ ख़ूब दिखायी देती है। विदेशियों को आकर्षित करने का सबसे अच्छा तरीक़ा ही यही है। उनकी अपनी पसंद का खाना शहर के बीचोंबीच उपलब्ध करवा दिया जाय तो वो घूमफिर कर फिर वहीं बैठे नज़र आएँगे।

जगह-जगह स्वतः ही लोग क़तार में खड़े हो जाते हैं और धैर्य के साथ आगे बढ़ते जाते हैं। कोई बीच में घुसने का प्रयास नहीं करता ना झगड़ता है।ज़रा सा ज़ुकाम हो जाने पर मास्क लगाए कई लोग दिखेंगे। सड़कों पर भीड़ ऐसी ही थी जैसे मुंबई में, पर सड़क पार करने के अपने तरीक़े थे। कोई जल्दबाज़ी या आतुरता नहीं। लाल बत्ती लांघती ना बसें ना कारें ना पैदल चलने वाले लोग। इतना अनुशासन कैसे लागू हुआ? एक दिन की कहानी नहीं लगती यह। अनुशासन हीनता पर लगने वाली कड़ी पेनल्टी इसका कारण हो सकती है। इतनी भीड़ में यदा-कदा पुलिस दिखायी दी, सर्वेलेन्स कैमरे ही उनकी पुलिस का काम करते हैं। अनुशासन के नाम पर हमें अभी बहुत कुछ सीखना है।

रास्ते भर हरे-भरे वृक्ष, जंगल, पहाड़ियाँ और दूसरी ओर समुद्री किनारा हांग कांग की विशेषता है। ऊँची-ऊँची इमारतें जिन्हें नए-नए रूप देने की कोशिश की गयी है। रिहायशी इलाक़ों में कंक्रीट का जंगल मज़ेदार लगता है। ख़िड़की का पर्दा खोलिए और सामने के चार फ़्लैट्स का नज़ारा सामने है। ऊपर देख नहीं सकते इमारत है, नीचे देख नहीं सकते आपकी ऊँचाई बहुत है, बस सरसरी निगाह से सामने देखते हुए पर्दा बन्द। इमारतें एक दूसरे पर लदी अनुभव की जा सकती हैं। प्राकृतिक विस्तार का नितांत अभाव लगा।

हमने पहले दिन ही IFC मॉल से मेरी गो राउंड जिसे हांग कांग् ऑब्ज़र्वेशन वील कहते हैं और क्लॉक टावर एरिया घूमा। यहाँ जाने के लिए पियर 7 से स्टार फ़ेरी ली जिसने सिम शा सुई उतार दिया। यहाँ हमने कुछ लड़कियों से बात करने की कोशिश की, पर अंग्रेज़ी बोलने में सभी आनाकानी कर चलती बनीं। एक तो शाम का धुँधलका और आनंद लेने के लिए अनेकों उपक्रम किसे फ़ुर्सत थी हमारी गम्भीर बात सुनने की। सामने बैक वाटर्स में सफ़ेद स्टार क्रूज़ हंस की तरह गम्भीरता लिए गतिमान था और मजेस्टिक लूना फ़ेरी मध्यकालीन सज-धज के साथ अपने लाल झंडों और लाल बत्तियों से रहस्यमयी उपस्थिति दर्शा रही थी।

वहीं हमने चैंग ली नामक चीनी बुज़ुर्ग से बातचीत की। पहले तो वे हमारे प्रोजेक्ट और जीवन सार की बात सुनकर हैरान हो गए। मुँह पर हाथ रखकर सोचने लगे फिर हँसने लगे। बोले, “७५ साल की उम्र तक भी मैंने कभी नहीं सोचा, मेरे जीवन का lesson क्या है? आज आपने सोचने पर मजबूर कर दिया है।” हमने उन्हें समय दिया कि हम सूप पीकर आते हैं आप सोचिए। जब हम लौट कर आए तो देखते ही बोले, “With outer world you can fight and reason out things, but the fight within is with conscience i.e. truth. It is therefore very difficult to come to conclusions. So believe in your inner self first.”

Mr. Chang Lee on the right
Mr. Chang Lee on the right

“बाहरी ताक़तों से आप लड़ सकते हैं पर जो लड़ायी अपने भीतर चलती है उससे किसी निर्णय पर पहुँचना सबसे मुश्किल काम है। इसलिए अपने अंतर्मन पर दृढ़ विश्वास रखने की ज़रूरत है।” श्रीमन ली बहुत लम्बे अरसे से अपना जीवन अकेले व्यतीत कर रहे थे। उनके आस-पास की पुरानी मान्यताओ की मीनारें ढही थीं लेकिन इनके आत्म विश्वास को बढ़ा गयी थीं। हमने उनसे सीखा कि बुरे से बुरे वक़्त में भी अंतर्मन की आवाज़ सुनना ही श्रेयस्कर है।

इसी तरह बिग बुद्धा देख कर आते समय हमें एक बहुत ही भद्र सैलानी झुओ ग्ग्वालिंग मिले। देश-विदेश की यात्राएँ उनके जीवन का पर्याय बन चुकी थीं। जिस देश की बात करो वहाँ की विशेषताएँ उन्हें उँगलियों पर याद थीं। वहाँ की आर्थिक स्थिति, राजनीतिक माहौल और परेशानी का सबब सब पता था। Very interesting….हम सब बहुत Impressed ……जैसे ही उनके साथ बैठे हम तीनों ने एक ही प्रश्न पूछा आपके जीवन का सार सर! …..हँसते हुए बोले, जिस देश की भी यात्रा करो वहीं के बन जाओ। उन्ही की तरह खाओ, कपड़े पहनो, उनकी हिस्ट्री पढ़ो और सबको शुक्रिया कहना सीखो। ना वो तुम्हें भूल पाएँगे ना तुम उन्हें और ख़बरें तो अख़बारों में आती ही हैं, तुम्हें ख़ुद आकर्षित करेंगी।

हम उन्हें शुक्रिया कहना नहीं भूले।

अब हमें लगा कि सभी को अपने गुज़रते जीवन से कोई ना कोई अपेक्षा रखनी चाहिए और देखना चाहिए कि उस ख़ास पड़ाव पे आकर हमने जीवन के सफ़र से क्या सीखा?

हांग कांग के सामाजिक जीवन को इतने निकट से देखने के बाद हमें विश्वास हो गया कि टीवी,इंटर्नेट,रेडियो अख़बार आपको वो नहीं दिखा सकता ……अँखियाँ जिस दर्शन की प्यासी…

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बचपन से प्रकृति की गोद में पली-बढ़ी श्रद्धा बक्शी कवि और कलाकार पिता की कलाकृतियों और कविताओं में रमी रहीं। साहित्य में प्रेम सहज ही जागृत हो गया। अभिरुचि इतनी बढ़ी कि विद्यालय में पढ़ाने लगीं। छात्रों से आत्मीयता इतनी बढ़ी कि भावी पीढ़ी अपना भविष्य लगने लगी। फ़ौजी पति ने हमेशा उत्साह बढ़ाया और भरपूर सहयोग दिया। लिखने का शौक़ विरासत में मिला जो नए कलेवर में आपके सामने है......

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