तुम आशा विश्वास हमारे
तुम धरती आकाश हमारे सा रे गा मा पर ये गीत चल रहा था और चार वर्ष की रुनझुन अपनी मम्मी के पीछे-पीछे घंटी लिए घूम रही थी । माँ पूजा की तैयारी कर रही थीं। मैं किसी काम से पूना आयी तो मामीजी के घर चार दिन के लिए ठहरी । रुनझुन की बातें सबका मन मोह लेती थीं । सभी उसे पुकारते रहते थे । मामीजी ने भारी घंटी उसके हाथ में देखी तो पुचकारकर कहा, ” रुन्नु, घंटी गिर जाएगी , पैर में चोट लग जाएगी।”
“ओफ़्फ़ोह ! दादी देखो आरती कर रही हूँ मैं !”
“अच्छा ? पूरे घर में ? आरती तो पूजा में करते हैं।”
“दादी भजन तो यहाँ चल रहा है ना , मैं आरती कर रही हूँ ।”
मैंने पुचकार कर उसे बुलाया – “तुम्हें पूजा आती है ?”” हाँ , आती है ।”” कैसे करते हैं ?” उसने हाथ जोड़े । हृदय से लगाए ।ओम् – ओम् बोला । घंटी बजायी और मुस्कुरायी। मैंने उसका हाथ पकड़ा अपने हृदय से लगा लिया । मैंने पूछा – भगवान होते हैं क्या ? बोली – मम्मी ने सिखाया सबके हार्ट में रहते हैं इसीलिए यहाँ छूकर जय-जय करते हैं ।और दादी कहती हैं जब फ़्रिज से मैं चाकलेट निकालती हूँ तब भी पीछे से भगवान जी देख लेते हैं ।
– वो मना करते हैं क्या ?
– हाँ ,मेरे दांत में कीड़ा लगा है देखो !
और उसने मुँह खोलकर दिखा दिया । सच में दो दांत काले पड़ रहे थे । मुझे समझ में आया कि यहाँ से नींव पड़ती है इस विश्वास की कि हम सबके बीच एक और शख़्स की उपस्थिति है जो सामने तो नहीं दिखता पर सबका भला चाहता है , सबकी परेशानियों में साथ देता है और उसे हम भगवान ,अल्लाह , ख़ुदा या गुरुजी के नाम से सम्बोधित करते हैं। कुछ घरों में यह सब नहीं होता । सभी मेम्बर काम करते हैं सुबह – सुबह सब तैयार होकर ऑफ़िस, स्कूल, या क्रेश में चले जाते हैं । कोई एक मेम्बर प्रार्थना स्थल में धूप बत्ती जला दे तो बहुत है । यहाँ सभी कर्म प्रधान हैं। समय पर प्रोजेक्ट रिपोर्ट बन जाए , मीटिंग्स सफल हो जाएँ । स्कूल मन्थ्ली टेस्ट में अच्छे मार्क्स आ जाएँ । बेबी साफ़ सुथरे क्रेश पहुँच जाए वही बहुत है । दिनचर्या शुरू हो गयी । इन घरों में भी सबके मन में आशा और विश्वास दृढ़ बैठे हैं । माहौल कर्म पर निर्भर करता है । सिर्फ़ भावनात्मक जुड़ाव में कोई शोबाज़ी नहीं है । यानी रोज़ की दिनचर्या काम से शुरू होती है और काम पर ख़त्म होती है ।देर रात को पार्टी भी बिज़्नेस प्रमोशन ही होती है । यही लोग सब त्योहारों पर खूब जमकर पार्ट लेते हैं नए कपड़े , प्रार्थना स्थल की सफ़ाई , सजावट , धूप, अगरबत्ती से घर महका देते हैं । एक और नजारा है दादाजी छड़ी लेकर घूमने जाते हैं, दादी बाल्कनी में योगा करती हैं | उनकी नज़र दादाजी के पीछे चलती है । दादाजी लौटते समय छड़ी की मदद से कुछ फूल रूमाल में बांधकर लाते हैं और जूते उतारकर फूल पूजा में रख देते हैं । दादी पीछे से नहीं चूकतीं – अरे , नहाकर पूजा में ज़ाया करो । बाहर डाइनिंग में रख दिया करो ना ।- क्यूँ ? भगवान का नाम जब कहीं भी किसी भी स्थिति में ले सकते हैं तो नहाए या ना नहाए क्या फ़र्क़ पड़ जाएगा ।मैं देता हूँ फ़्रेश एकदम ओस से नहाए साफ़ – सुथरे फूल । मन चंगा तो कठौती में गंगा !
मेरे घर के सामने निलय रहता है । उम्र होगी तक़रीबन चौबीस -पच्चीस । बहुत ही मिलनसार ! सबसे बात करेगा। लिफ़्ट में उतरते – चढ़ते अक्सर मिल जाता है। दोस्तों की मदद और उनके लिए जान भी हाज़िर रखना, उसकी आदत हो गयी है। एक दिन लिफ़्ट में उसका मोबाइल हाथ से फिसल गया मैंने उठाकर दिया तो हैरान रह गयी । उसके स्क्रीन पर ढेर सारे भगवान ,पीर – पैग़म्बर, सिख गुरु समुदाय सबकी फ़ोटोज़ का कोलाज बना हुआ था। मैंने पूछा -विश्वास रखते हो ? तुरंत उत्तर आया ,-आँटी इनके बिना तो मेरा वजूद ही नहीं है ।
-मुझे इम्प्रेस करने की कोशिश है या सचमुच तुम्हें इनसे गाइडेन्स मिलती है ?
-आँटी ,बचपन में दादी ने सबसे परिचय करवा दिया था, तबसे ये सब मेरे बेस्ट फ़्रेंड्ज़ हैं ।
-इतने सारे ? या कोई एक ज़्यादा ? मैंने पूछा ।
-आँटी ,मैं मानता हूँ कि मेरे मिलने वाले सभी लोगों में इनका कोई ना कोई गुण ज़रूर छिपा है ।ये दोस्तों के रूप में मुझे मिलते रहते हैं ।कोई भगवान आकाश से थोड़े ही उतरता है ।सबके अंदर सदगुणों में रहता है । मैं अवगुण इग्नोर करता हूँ । इंसान है कोई कमी तो होगी । सुधर जाएगा अपने आप ।
-अच्छा ये बताओ तुम्हारे सभी दोस्त ऐसा ही सोचते हैं या तुम ही ऐसा मानते हो ?
-आँटी , सब अलग घर से आते हैं सबका माहौल अलग है ये बहुत प्राइवेट मामला है मैं डिस्कस ही नहीं करता ।हमारी जेनरेशन इज़ डिफ़्रेंट यू नो ? हम फ़ील करते हैं आप शायद इसे अनुभव कहते हैं । हमें किसी रूप-रंग से सरोकार नहीं बस सुपर पावर है जो निराकार है ।
-तब तुमने इतनी फ़ोटोज़ मोबाइल पर क्यूँ लगाई हैं ?
-दादीऽऽ , मेरी दादी की सौग़ात हैं सब ।उनकी याद में साथ रखता हूँ इन्हें ।
-ओके , तब तो तुम्हारी दादी सुपरपॉवर हैं तुम्हारे लिए ।
-येस्स , आपने सही पकड़ा ।और वो मोबाइक पर फुर्र हो गया । मेरी जिज्ञासा और बढ़ गयी ।
आज की पीढ़ी का विश्वास कहाँ है ? सभी धर्म स्थलों में खूब खुश होकर जाते दिखते हैं ।त्योहार भी जम कर मनाते हैं पर ये भी कहते हैं हमें क्रिया कलापों में ना खींचो। हम उत्सव का आनंद लेते हैं , तैयारी करते हैं क्यूँकि यह फ़ैमिली टाइम है । हमें कुछ समझना होगा तो हम देवदत्त पटनायक के वीडियो देख लेंगे ,आमिश के उपन्यास पढ़ लेंगे ,हिस्ट्री ऑफ़ सिविलाइज़ेशन पढ़ लेंगे । जो मन को भाएगा वही कर लेंगे पर प्लीज़ कुछ थोपो मत। आपके तरीक़े उलझाते बहुत हैं हमें उससे अलग सोचने दो । By changing nothing , nothing changes !
सही कहा आध्यात्मिक जगत में पहले पुराने जमें संस्कारों को ही मिटाया जाता है ।हृदय की सम्भावनाओं को पहचानना पहला पाठ है । Cleansing of heart ! तभी आत्मा के उत्थान की बात की जाती है ।आनेवाली पीढ़ी कर्म सिद्धांत को महत्त्व देती है । सही भविष्य के लिए आज सुधारना आवश्यक है । मानव जीवन में सामाजिक सिद्धांतों और उत्सवों का महत्त्व बहुत है पर हर व्यक्ति के आत्मिक विकास को उसी पर छोड़ना श्रेयस्कर है। Reality has dawned !