टाइम कैप्सूल
लगा कुछ ऐसा जब पहुँची
Salwoods ! एक ऐसा जंगल
हो रहा जहॉं जंगल में मंगल ही मंगल,
गहरी घाटी नवेली दुल्हन
कलरव चिड़ियों का
युवा ह्रदय करते स्पन्दन,
लगा कुछ ऐसा, आ गई हूँ
अनोखे कार्निवल में
खिले हैं जहॉं अनेकों
मुस्कुराते फूलों सरीखे मुखड़े,
बहुत करते हैं आकर्षित
मुझे मुसकुराहटों में
दमकते चेहरे,
उनके झुण्ड से आते ठहाके
जो अनायास माहौल को हल्का
कर रहे हैं !
न कहीं द्वन्द्व न कहीं प्रतिबन्ध
सब कुछ नया सीखने को प्रतिबद्ध,
ढेरों ढलानों पर रंग-बिरंगे झालर
उत्सव को मौजूं कर रहे पल -पल,
प्रोजेक्ट फ्युएल ने बॉंधा कुछ ऐसा समां
भोर से रात्रि तक बंधे आए सभी मेहमां,
सार्थक क्रिया – कलाप जीवन के
अनुभवों से भरे वार्तालाप
कभी हंसाते हैं कभी रूलाते हैं
बहुत से हस्त – कौशल,
पंच – ऐन्द्रिक अनुभूतियॉं
निराला अहसास करा जाते हैं ,
प्यार व सौम्य उत्कंठा से भरे
मेरे प्यारे दीपक
उत्तराखण्ड का भाग्योदय है
तुम जैसे बच्चों को पाकर…
अतिशय आनन्द में सराबोर
तुम्हारी
पद्मा नानी
डा. पद्मा सिद्धेश
लिखना -पढ़ना और गुनना मेरा स्वभाव बन गया था । उसे जीवन में ढालना बहुत सहज होता गया । अध्यापिका बनते ही जैसे सपने साकार हो गए।
बचपन मथुरा – वृन्दावन में बीता । विवाह के बाद कोटद्वार उत्तराखण्ड आ गई । वहीं से अध्यापिका बनी । १९९४ में मुझे राष्ट्रपति पुरस्कार मिला , पति बहुमुखी प्रतिभा के धनी थे । उन्होने बहुत सम्मान दिया । उनके सान्निध्य में बहुत कुछ सीखा , गुना और जीवन में अपनाया। उनके जाने के बाद उनकी कविताओं की तीन पुस्तकें छपवाईं , हार्टफुलनेस सहज मार्ग की तरफ मुड़ गई स्वयं भी पुस्तक लिखी ।
जैसे – जैसे जाति समस्या समझ में आई , मैंने तुरन्त पति का नाम अपना लिया । डी. फिल करने के उपरान्त विद्यालय के बच्चों का उत्साह बढ़ाने उत्तरकाशी गई माउन्टेनियरिंग इन्सटिट्यूट में । साथ में हाइकिंग, रैपलिंग , रिवर क्रॉसिंग सब किया।
मैंने कैलाश मानसरोवर की यात्रा पैदल की। प्रकृति की गोद में बहुत से प्रश्नों के उत्तर मिले। जीवन में प्रेम के सही मायने सीखे। अन्तिम सॉंस तक प्रेम सर्वोपरि का सन्देश देना चाहती हूँ।