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हिन्दु समाज में बहुत गहराई से एक विश्वास जड़ें जमा चुका है कि यदि आप अपनी अंतिम साँस वाराणसी में लेंगे तो आपको काशीलाभ यानि मोक्ष की प्राप्ति होगी, जिसके फलस्वरूप आप कार्मिक पुण्य-लाभ के चक्र से छूट जाएँगे और इस संसार में पुनर्जन्म नहीं होगा।

काशी लाभ मुक्ति भवन वाराणसी में स्थित उन तीन मुख्य अतिथि गृहों में से एक है जहाँ लोग जीवन की अंतिम साँसें लेने आते हैं। मुक्ति भवन के अलावा मुमुक्षु भवन और गंगा लाभ भवन भी हैं। सन १९०८ में निर्मित मुक्ति भवन शहर में और आस- पास के क्षेत्रों में बहुत प्रसिद्ध है।

श्री भैरवनाथ शुक्ला मुक्ति भवन के पिछले ४४ वर्षों से मैनेजर हैं। उन्होंने राजा हों या रंक सभी को अपने अंतिम दिनों में मृत्यु और शांति की खोज में यहाँ आते देखा है । वे भवन के प्रांगण में एक लकड़ी की बेंच पर बैठे सहज भाव से हमसे बतियाते रहे। उसी बातचीत से हमने जीवन की १२ महत्त्वपूर्ण शिक्षाएँ ग्रहण कीं। ये उनके जीवन में १२००० बार से अधिक मृत्यु के साक्षात्कार के बाद pearls of wisdom की तरह जुड़ गयी हैं।

१. सभी प्रकार के वैमनस्य से अपने-आप को मृत्यु से पहले मुक्त करें:

शुक्लाजी श्री राम सागर मिश्रा की कहानी सुनाते हैं। जो संस्कृत के प्रकांड पंडित थे। मिश्राजी छह भाइयों में से सबसे बड़े थे और सबसे छोटे भाई को बहुत प्यार करते थे। कुछ वर्ष पहले दोनों भाइयों में अन-बन हुई और घर में विभाजन की दीवार खिंच गयी।

अपने अंतिम दिनों में मिश्राजी मुक्ति भवन में पैदल चलकर आए। उनके हाथ में उनका पान-दान भी था।अपने लिए रूम नम्बर ३ ख़ुद बुक किया और पूर्ण विश्वास से बताया कि आज से १६ वें दिन हम दुनिया से जाएँगे। १४ वें दिन उन्होंने कहा,” मेरे बिछुड़े हुए भाई से कहो कि हमसे आकर मिल जाए,उसके साथ चल रही कलह हमसे सही नहीं जा रही। मैं अपने झगड़े के कारण को निबटाना चाहता हूँ।” एक पत्र भेजा गया और ठीक १६ वें दिन जब सबसे छोटा भाई आया,मिश्राजी ने उसका हाथ पकड़ा और कहा घर की दीवार गिरा देना। मुझे माफ़ कर देना। दोनों भाई रोने लगे इसी बीच मिश्राजी शांत मुखमुद्रा में कूच कर गये।

शुक्लाजी ने ऐसी ही ना जाने कितनी जीवन गाथाएँ इन कई सालों में देखी हैं।वो कहते हैं,” लोग इतना कुछ अनावश्यक मन में भरकर लाते हैं। पूरी ज़िंदगी इतना बोझा ढोते हैं और फिर अंतिम समय में उससे मुक्त होना चाहते हैं। असली मज़ा तो तब है जब झगड़ा जितनी जल्दी हो सके सुलझा दें, ताकि अंतिम समय में शांति से जा सकें।”

२. सरलता से जीवन बिताना ही जीवन की सच्चाई है।

लोग तामसिक भोजन तभी खाना बंद करते हैं जब उन्हें पता चलता है कि अब तो जाना ही है। बहुत से लोगों को समझ बहुत देर से आती है कि उन्हें सरल जीवन जीना चाहिए था। इसका पछतावा आख़िरी पलों में बहुत होता है। उनके अनुसार सरल जीवन जीने के लिए कम ख़र्च करें। हम अधिक से अधिक सामान ख़रीदना चाहते हैं।अगर संतुष्टि चाहिए तो किसी भी प्रकार की जमाख़ोरी बंद करें।कम से कम ख़र्च में ही गुज़ारा चला लेना चाहिए।

३. लोगों की बुरी आदतों पर ध्यान मत दो:

शुक्लाजी समझाते हैं कि प्रत्येक मनुष्य में कुछ बुरी और कुछ अच्छी आदतें होती हैं।लेकिन पूरी तरह बुरी आदतों वाला कोई नहीं होता। जिस किसी में ऐसे लक्षण दिखें उसे पूरी तरह नकारना नहीं चाहिए,हमें उसकी अच्छी आदतों की सराहना करनी चाहिए। हम अपने मन में किसी के प्रति तभी दुर्भावना रख सकते हैं जब उसकी ग़लत प्रवृत्तियों पर ही हमारा ध्यान रहेगा। इसके बजाय अगर उनकी सदप्रवृत्तियों पर अधिक ध्यान देंगे तो अापका समय उन्हें अच्छी तरह जानने में व्यतीत होगा। हो सकता है अापका क्रोध प्रेम में परिवर्तित हो जाए।

४. दूसरों से सहायता माँगने में ना कतराएँ:

आप सब कुछ जानते हैं और स्वयं सब कुछ कर सकते हैं यह आपकी कर्मठता का प्रतीक हो सकता है लेकिन दूसरों की क्षमताओं व अनुभवों को आँकने में यह आपको बाधित करता है ।

शुक्लाजी मानते हैं कि हमें दूसरों की सहायता करनी चाहिए लेकिन दूसरों से ज़रूरत के समय सहायता लेनी भी चाहिए।
प्रत्येक व्यक्ति किसी ना किसी क्षेत्र में आपसे अधिक जानकारी रखता है। उसका अनुभव आपको तभी सहायता देगा जब आप खुले दिल से उसे स्वीकारेंगे।

उन्हें एक ८० वर्षीया वृद्धा का क़िस्सा याद आया। ८० के दशक में उन्हें यहाँ लाया गया था। जो लोग उन्हें लाए थे वे बिना आवश्यक फ़ार्म भरे या कार्यवाही किए छोड़कर चले गए। कुछ ही घंटों बाद पुलिस उस वृद्धा के रिश्तेदारों की तलाश में आ गयी।पुलिस ने बताया कि वे भगोड़े नक्सलवादी थे। शुक्लाजी बिलकुल अनजान बन गए। पुलिस वापस लौट गयी।इसी बीच वृद्धा की मृत्यु हो गयी। कुछ घंटों बाद जब उनके रिश्तेदार लौटे तो शुक्लाजी ने डाँट कर कहा,” जब गाँव में ५-८ लोगों को मारकर आए तो नानी को भी वहीं गोली मार देते और वहीं क्रिया-कर्म कर लेते ।मुझे झूठ बोलने पर क्यूँ मज़बूर किया? मेरा सिर शर्म से झुक गया ।” वृद्धा का पोता इनके पैरों में झुक गया और माफ़ी माँगने लगा कि हममें से कोई भी उन्हें मुक्ति दिलाने लायक नहीं था।वह आप ही कर सकते थे। हम आपकी इज़्ज़त करते हैं इसीलिए उन्हें मुक्ति भवन लाए थे।

५. छोटी-छोटी चीज़ों में ख़ुशियाँ ढूँढो:

मुक्ति भवन में आत्मिक आनंद देने वाले भजन दिन में तीन बार गाए जाते हैं। कुछ लोग ध्यान देते हैं और प्रशंसा करते हैं। गाने और वाद्य यंत्रों से प्रभावित होते हैं जैसे पहले कभी ना सुने हों।अगर सुने भी हों तब भी रुकते हैं और उसमें आनंद लेते हैं।

लेकिन ऐसा सबके साथ नहीं होता। जो लोग बहुत अहंवादी और नकारात्मक प्रवृत्ति के होते हैं उन्हें ये सब छोटी-छोटी चीज़ें समझ नहीं आती क्यूँकि उनका मस्तिष्क पहले ही किसी ना किसी उलझन में फँसा होता है। इसलिए मानसिक तौर पर शांति प्राप्त करना सबसे ज़्यादा अहम मुद्दा है।

६. स्वीकारना ही मुक्ति का साधन है:

बहुत से लोग समस्या को स्वीकारने से ही कतराते हैं। बार-बार नकारने से उनमें ग़लत भावनाएँ घर कर जाती हैं। जब आप समस्या को ठीक से स्वीकारेंगे तभी उसके समाधान का सूत्र भी पकड़ पाएँगे,नहीं तो तब तक भ्रम के दौर में जूझते रहेंगे। किसी भी परिस्थिति के प्रति प्रतिक्रियाहीन होना, टालना और नकारना आपकी चिंता को बढ़ाता है। उस समस्या के प्रति डर पैदा हो जाता है जबकि आपको उसे स्वीकारना है।अब खुले मन से सोचना चाहिए कि इसका समाधान क्या और कैसे निकालें।स्वीकृति आपको आज़ादी और उलझन से उबरने की शक्ति देगी।

७. सबको बराबर समझिए, इससे अच्छी तरह से सेवा कर सकेंगे:

शुक्लाजी का सेवा के प्रति समर्पण और दृढ़ता इसी शिक्षा से साफ़ समझ आती है। वो स्वीकारते हैं कि जीवन कठिन हो जाता यदि जाति, सम्प्रदाय, रंग और सामाजिक स्तर के अनुसार सेवा करते। भेदभाव बहुत सी उलझने लाता है और आप किसी की भी सेवा ठीक से नहीं कर सकते जब आप सबको बराबर की दृष्टि से देखेंगे उसी दिन आप हल्का महसूस करेंगे।आपको चिंता नहीं होगी कि कौन बुरा मानेगा और कौन भला। अपना कार्य सरल रखिए।

८. जब भी आपको जीवन का ध्येय मिल जाए उसके लिए कुछ करिए:

अपने जीवन का लक्ष्य जानना बहुत अच्छी बात है बशर्ते आप उसके लिए कुछ करें। बहुत से लोग ये बात बहुत अच्छी तरह जानते हैं लेकिन इसे पाने के लिए कुछ नहीं करते ।हाथ पर हाथ धरे रहने से अच्छा है कि लक्ष्य निर्धारित ही ना करें। उसके प्रति एक इच्छा जागृत करें ,योजना बनाएँ तभी आपकी समझ में आएगा कि कितनी मेहनत और समय उसे पाने में लगाना है।जब आप मेहनत करने लगेंगे तब आप उसे छोड़ नहीं पाएँगे। जो आपके लिए महत्त्वपूर्ण है उस पर मेहनत जी -जान से करिए।

९. अच्छी आदतें ही जीवन मूल्यों में बदलती हैं:

शुक्लाजी कहते हैं कि अच्छी आदतें डालने से ही जीवन मूल्यों का संचयन हो सकता है।अच्छी अादतें डालने में समय और अभ्यास लगता है।यह बिलकुल जिम में मांसपेशियाँ बनाने की तरह है जिस पर प्रतिदिन व्यायाम करना होता है। जबतक मनुष्य सच्चाई,दयालुता या ईमानदारी प्रतिदिन व्यवहार में नहीं लाता तब तक उसकी अच्छी आदतें गढ़ीं नहीं जा सकतीं।

१०. ख़ुद चुनें आप क्या सीखना चाहते हैं?

इस संसार के असीमित ज्ञान में से ,जो हमें सब तरफ़ उपलब्ध है । ख़ुद ही चुनना है कि क्या सीखना है नहीं तो हम भ्रमित ही रह जाएँगे।इसका मुख्य उद्देश्य यह होगा कि पूरी तल्लीनता से आप वही सीखेंगे जो आपके लिए महत्त्व रखता हो।लोग आप पर अपना ज्ञान और दर्शन थोपना चाहेंगे पर आपको उसे ही स्वीकारना है जो आपके अंतर्मन को छुए और अभूतपूर्व आनंद से भर दे। स्मित मुस्कान के साथ शुक्लाजी कहते हैं,अपने अंतिम क्षणों में बहुत से लोग बोल नहीं पाते तो वे अन्तर्मुखी हो जाते हैं और उन पलों को याद करने लगते हैं जिनमें उन्होंने कभी गीत गाया हो या कुछ सीखा हो, वही यादें उन्हें भाव-विभोर करती रहती हैं।

११. आप लोगों से सम्बंध नहीं तोड़ते, आप उस विचार से तोड़ते हैं जिसको आप स्वीकार नहीं करते:

आप उन लोगों से बहुत दूर नहीं जाते हैं जिन्हें आप प्यार करते हैं । उनसे किसी ना किसी तरह जुड़े ही रहते हैं। किसी भी सम्बन्ध में विचारों में मतभेद आने के कारण आप बोलना छोड़ देते हैं। इसका मतलब यह नहीं कि आप उनके साथ अब कभी नहीं जुड़ेंगे। इसका अर्थ है कि आप उनके एक अनचाहे विचार से या व्यवहार से नहीं झगड़ना चाहते। इसे अगर समझ लें तो बहुत सा बोझ, कड़वाहट और शत्रुता समाप्त हो जाएगी।

१२. अपनी कमाई का १०% पैसा धार्मिक कार्यों के लिए अवश्य दें:

धर्म की परिभाषा शुक्लाजी के लिए कर्म प्रधान है। वो कहते हैं सबका भला करना ही धर्म है और दूसरों के प्रति जिम्मेदारीपूर्ण व्यवहार ही सबसे अधिक महत्त्वपूर्ण है। बहुत ही सरल गणित है कि अपनी कमाई का १० प्रतिशत दूसरों के कल्याण में लगाइए। बहुत से लोग दान-पुण्य करते हैं पर अपने अंतिम दिनों में, क्यूँकि मृत्यु की चिंता से परेशान होते हैं। जब स्वयं दुःख झेलते हैं तभी दूसरों के दुःख की पहचान होती है। अपने प्रिय जनों से घिरे और अनजान लोगों की दुआएँ लेकर जाने वाले लोग आसानी से जीवन मुक्त हो जाते हैं। यह तभी सम्भव है जब आप अपनी सम्पत्ति को जकड़ के न बैठें और उसे दूसरों की भलाई के लिए बॉंट जाएँ।

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Project FUEL collects, preserves and passes on life lessons from all across the world. We’re currently crowdfunding for our next Masterpiece Tour to Europe, to collect life lessons from refugees displaced after the conflict in Syria. You contribution counts. Please click here to contribute: https://www.wishberry.in/campaign/collecting-life-lessons-refugees/

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Deepak Ramola, Founder and Artistic director of FUEL is a life skill educator at heart and in practice. With his initiative Project FUEL Deepak travels across the continent with people's life lessons designed as interactive and performance based exercises. He is also a gold medallist in BMM from the University of Mumbai, a spoken word poet, an actor, a lyricist and a writer.

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