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होना तो चाहिए था -“तुम जब होगे साठ साल के और मैं होंगी पचपन की
बोलो प्रीत निभा………….

इस बार जब मैं घर आया माँ-पापा से बात करते-करते कहीं कुछ वातावरण में बदलाव सा लगा। There was something a miss. बहुत सोचा क्या बात हो सकती है? Mummy अनमनी सी और पापा भूले-भूले से। हम सभी भाई बहन अपनी-अपनी ज़िंदगी बढ़िया जी रहे हैं। हमारी तरफ़ से तो कोई परेशानी नहीं, पर वो zest of life कहाँ गया? जैसे ही गाना बजता था पापा मॉम का हाथ पकड़ कर नाचने लगते थे। चार दोस्त आए होते तो तबला, ढपली, ढोलक कस लेते और संगीत की महफ़िल जम जाती। आख़िर मुझसे रहा नहीं गया। सुबह-सुबह चाय के कप के साथ माँ को बगिया में घूमते पकड़ ही लिया। बहुत पूछने पर माँ बोलीं, “बेटे पापा के retirement के केवल आठ महीने बचे हैं।” तो क्या हुआ? सभी होते हैं रिटायर, यह तो हमें भी पता है उम्र के साथ active सर्विस से बाहर आना ही पड़ता है।” पर तभी दिमाग़ में ठन्न से बजा। समय आ गया है, कमांड तुझे अपने हाथ में ले लेनी चाहिए। पुन्नू प्यारे, कंधे चौड़े करले, माँ-पापा दोनों को बाज़ुओं में भरकर आगे बढ़ना है। उनकी भविष्य के प्रति आशंका का निराकरण करना है।

पापा से मैंने तीन sittings का समय माँगा। Three hours per sitting….. बहुत ख़ुशी से उन्होंने हाँ करदी। बात जब शुरू हुई, मैंने पूछा रिटायरमेंट के बाद what next? Papa was blank……… believe me, totally blank. उनकी ख़ामोशी तोड़ने के लिए मैंने बहुत से लोगों की post retirement occupations और ख़ुश हाल ज़िंदगी की कहानियाँ सुनानी शुरू कीं। छोटे-छोटे इनपुट वो भी दे रहे थे पर मेरी ही तरह सब सुने-सुनाए या Internet से सुनी कहानियाँ….. बात कुछ बन नहीं रही थी। मुझे होम वर्क की बहुत आवश्यकता थी। मेरी तो नौकरी शुरू हुए अभी जुम्मा-जुम्मा चार साल बीते थे और वो चालीस साल पूरे करने जा रहे थे। मैं जिस लाइफ़ स्टाइल को maintain करने के लिए २४*७ भागता हूँ, वो चालीस साल आनन्द लेकर अब second phase में जा रहे थे। अवश्य ही इनको सबसे पहले मानसिक तौर पर तैयार करना होगा। उन्हें विश्वास दिलाना होगा कि हम सब भाई-बहन उनकी पूरी देख-भाल करेंगे। अब हम सब एक दूसरे के लिए जिएँगे। आप अपनी नौकरी की अफसरियत से बाहर आएँगे पर घर के हेड तो आप ही रहेंगे।

मैं छुट्टी कम करके वापस चला, पूरा आश्वासन देकर कि अगले महीने पूरी तरह सोच कर आऊँगा तब तक आप अपना पेपर्स का काम पूरा कर लीजिए। पापा के चेहरे पर संतोष दिखा, मेरी तीन घंटे की कुल तीन sittings ने लगता है कुछ कमाल किया है। वापस आकर ऑफ़िस में ऐसा हुआ कि एक हफ़्ते तक tours में उलझा रहा। माँ से बहुत संक्षेप में बात कर पाया लेकिन मैंने नोटिस किया कि पापा के whatsapp मेसजेज़ रेग्युलर आने लगे। मुझे अच्छा लगा कि कहीं भी कुछ सलाह लेना चाहते हैं तो मुझे भी include कर रहे हैं। उन्हें शायद मुझमें दोस्त दिखायी देने लगा था। उनका नाम अब मेरी broadcast list में सबसे ऊपर था। मेरी पत्नी भी समझ रही थी।

एक दिन अचानक पापा बोले, “अभी तो जो हुज़ूम मेरे चारों तरफ़ घूमता है, retire हो जाऊँगा तो कौन पूछेगा?”
“पापा, इस हुजूम के लिए तो आपने नौकरी इतनी अच्छी तरह नहीं की थी ना, stay positive- Good things and good people will follow you wherever you go”. धीरे-धीरे भविष्य की ओर बढ़िए। Just move on! हमारी पीढ़ी का life motto ही यही है life is a journey अटको मत just move on!

अगली छुट्टी कम्पनी से मिलने में चार हफ़्ते लग गए। इस बीच मैंने बहुत होम वर्क किया। सबसे पहले पापा के डिपार्टमेंट से पिछले दो सालों में अब तक रिटायर होने वाले दोस्तों से मिला, कुछ से टेलिफ़ोन पर बात की। उनसे उनके आज के जीवन के बारे में पूछा। अधिकांश जीवन बहुत मज़े में जी रहे थे। कुछ दुबारा नौकरी या NGOs में सहायता कर रहे थे। कुछ अपनी ज़मीन-जायदाद सम्हाल रहे और कुछ समाज सेवा में व्यस्त थे। कुछ गोल्फ़ पार्टीज़ socialising के मुरीद थे तो कुछ धार्मिक किताबों का आस्वादन ले शान्त जीवन बिता रहे थे। सिर्फ़ दो मित्र चिंतित और दुःखी लगे क्यूँकि एक की बेटी अकस्मात् दुर्घटना के कारण विधवा हो गई थी और दूसरे मित्र को menengitis से प्रभावित ३० वर्षीय बेटे की देखभाल करनी थी। इनसे खुलकर बात करने पर लगा कि ये तो जीवन के प्रति सबसे ज़्यादा पॉज़िटिव हैं। उन्होंने बाहरी संसार से बस ज़रूरत का नाता रखा था, पूरी तरह उस बेटे की सेवा, मानवता की सेवा की तरह निभा रहे थे। कहने लगे भगवान ने हमें पहले से ही ये काम करने लायक समझा तभी ऐसी आत्मा हमारे घर आयी अब हम पूरी तरह इसकी देखभाल ख़ुद कर पा रहे हैं। जब नौकरी थी तब भी तो ये हमारे पास था बस तब हमारे पास इतना वक़्त नहीं था। इसीलिए जब-जब मैं उनके घर गया, वो बेटा हमेशा हँसता हुआ मिला। मुझे लगा था कि वो अंदर से दुखी होंगे पर मिलने पर लगा कि दुःख ने उनपर कोई प्रभाव नहीं छोड़ा, समझौता कर किनारे हो गया। वो मगन हैं संत की तरह सेवा परमो धर्म: को जीवन का ध्येय मानकर।

पापा के retirement के अभी छः महीने बाक़ी हैं। छुट्टी मिलते ही मैं सपरिवार घर आया। पापा कुछ पहले से शांत और मुखर लगे। माँ cool थीं। मैंने पापा के पेपर वर्क्स को समझकर काम शुरू किया। उनके लास्ट मिनट्स रिटायर मेंट धनराशि देय जैसे हेल्थ लाभ योजना, insurance में ज़्यादा बचत, PPF स्कीम में ज़्यादा money डिपॉज़िट, बैंक में आवर्ती डिपॉज़िट करवाया ताकि आने वाले समय में आय टैक्स फ़्री हो जाए।

एक मासिक बजट बनवाया जिसमें प्रतिमाह कितना ख़र्च आएगा, अनपेक्षित यात्राएँ, मेहमान, रेस्ट्रॉं में खाना, उपहार सभी का ध्यान रखा। सभी कुछ आगे आने वाले समय में महँगा होना है। बहुत सोच समझकर सेविंग्स और इंवेस्टमेंट बढ़ाने होंगे। असल में पापा को दो साल पहले ही बढ़ा लेने चाहिए थे, कोई बात नहीं हम है ना उनके असली इंवेस्टमेंट! उनके बच्चे…… हम ध्यान रखेंगे।

पेन्शन से सभी ख़र्चे पूरे नहीं होंगे, तब मैंने प्लान किया कि जो एक साथ पैसा मिलेगा उसे financing expert से सलाह लेकर कुछ बांड्ज़, shares, म्यूचूअल फ़ंड्ज़, बैंक fixed डिपॉज़िट्स आदि में जमा करवाना ठीक रहेगा। हमें आगे के तीस साल सोचकर ही सब कुछ प्लान करना है।

पापा का गाँव में दो कमरों का घर बंद पड़ा है। उसे मरम्मत करवा के किराए पर चढ़ाने की पेशकश की। उसमें पापा रह नहीं सकते, यहाँ नया मकान ख़रीदने में वक़्त लगेगा तब तक जिस किराए के घर में रहेंगे, उसका कुछ पैसा तो गाँव के घर से मिल जाएगा। दोनों ही मान गए। कुछ दिन किराए पर रहने में ही बुद्धिमानी है। बनिस्बत बड़ा सा घर ख़रीदकर देखभाल करने में परेशानी झेलने से। घर अगर शहर की पेरीफेरी पर भी स्थित है तो सस्ता किराया, प्रदूषण से बचाव और सीमित लाइफ़स्टाइल के लिए अच्छा है। पापा हमारे और अन्य बच्चों के साथ भी रह सकते हैं पर आज की मानसिकता में आमने-सामने के फ़्लैट में रहना अच्छा है। साथ में भी और आवश्यक दूरी भी।

मैंने पापा के अनुभव को ध्यान में रखते हुए resume बनवाया और नए jobs के सर्च engine में डलवा दिया। ओहदा कम भी हो पर अभी ऑफ़िस जाने की आदत है अगले पाँच साल तो नौकरी कर ही सकते हैं। विदेशों में तो रिटायरमेंट की उम्र ६५ वर्ष है। वो भी चाहें तो २ वर्ष और extension ले सकते हैं। पापा हमारे घर बैठने वाले नहीं, ये मैं जनता हूँ। जल्दी से जल्दी consultant बनें या private कम्पनी जॉइन करें यही ठीक रहेगा।

मैंने उनसे पूछा कहीं कोई उधार या EMI तो नहीं चल रहा है? सबसे पहले उसे ही ख़त्म कर देना चाहिए। पेन्शन के साथ बहुत सोच समझकर लोन या बैंक से उधार लेना चाहिए। मेरी बहन की शादी पर पापा ने बीमा पॉलिसी से लोन लिया था जिसकी आख़िरी किस्त दो महीने में समाप्त होने वाली थी।

अब मैंने घर में चारों तरफ़ नज़र घुमायी। पापा की अभिरुचि के अनुसार उनके पुराने पड़े तबले ठीक करवाए और उनकी पूड़ी बदलवाईं। उन्ही के कमरे के बाहर कोने में मेज़ पर रख दिए ….. उनकी आँखों में चमक देख कर मुझे अति प्रसन्नता का अनुभव हुआ। मैं देख रहा था सुबह-सुबह चाय से पहले और शाम को तीनताल और कहरवा के चक्करदार परन और लहरिए बजने शुरू हो गए। माँ के चेहरे पर मुस्कान में अलग ही अन्दाज़ आ गया।

अब मैं, माँ और पापा को लेकर पूरे मेडिकल चेक अप के लिए गया। माँ पहले ही ब्लड शुगर और हाई ब्लड प्रेशर की दवा ले रही थीं। सारी मेडिकल रिपोर्ट लेकर हम डॉक्टर से मिले। उन्होंने बहुत अच्छी तरह नए लाइफ़ स्टाइल फ़ोर मेडिसन फ़्री लाइफ़ का तरीक़ा बताया। ज़ोर दिया कि आप दोनों योग सीखने जाइए, वॉकिंग क्लब के मेम्बर बनिए। लाफ़िंग क्लब में ख़ूब हँसिए और बतियाइए। ख़ूब active रहिए। सुनकर अच्छा लगा।ये सब तो मैं भी शुरू कर सकता हूँ। मॉं के लिए शुगर और बी पी जाँचने वाला डिजिटल instrument ख़रीद लिया। माँ का डायट कंट्रोल चार्ट बाक़ायदा dietician से बनवाया और किचन के बोर्ड पर चिपका दिया।

पापा को मानसिक तौर पर तैयार करने के लिए मुझे बार -बार समझाना पड़ा, इतनी लम्बी सर्विस के बाद पापा ये वक़्त एक गोल्डन opportunity की तरह आ रहा है। Just like a breadth of fresh air! जब आप अपनी सभी तमन्नाएँ पूरी कर सकते हैं। अपने सपनों को साकार करिए। अपनी जीवन की कहानी लिख डालिए। कविता लिखिये। जॉब करते समय जो दिल की उमंग पूरी ना कर सके अब करिए। कुछ भी किया जा सकता है। बार-बार अपने पर बूढ़े का टैग मत लगवाइए। पेंटिंग सीखिए, बाक़ी सब को भी प्रेरित करिए। अपने अनुभवों को अपना हथियार बनाइये अगली पीढ़ी को बॉंटिए।

जीवन में कभी भी नए skills सीखे जा सकते हैं। सर्टिफ़िकेशन कोर्स कर लीजिए। अपने जीवन को सही सन्तुलन पर चलने दीजिए। आप अब विचार,आध्यात्म और मनोवेगों का ध्यान रखिए। अब समय आ गया है जब आप Around the world घूमने जा सकते हैं। नयी नौकरी शुरू करने से पहले, एक लम्बी यात्रा पर जाइए। देश ही में इतना कुछ है देखने के लिए। चारों कोने रौंद डालिए। केरल, Pondicheri, उड़ीसा, नॉर्थ ईस्ट और कश्मीर जहाँ नहीं गए वहाँ घूम आइए। नेपाल, भूटान या सिक्किम सुन्दर गन्तव्य हो सकते हैं, Good option! Europe, अमेरिका, न्यूज़ीलैंड या Australia सभी आप जैसे टुअरिस्ट का इन्तज़ार कर रहे हैं। कहिए तो प्लान बना दूँ। सारी ज़िंदगी तो हमारी पढ़ाई, नौकरी और शादी में लगा दी। अब हमारी बारी है, आपको relax करवाने की। टिकट हम देंगे। Idea conveyed successfully!

पापा ने एक काम ख़ुद ही कर लिया था। समय के साथ अपनी विल बनाकर वक़ील से रजिस्टर करवाई। हमें तीस से पैंतीस साल का retirement लेकर चलना चाहिए। बहुत से लोग अंडर एस्टिमेट करके चलते हैं “अब और कितना जीना है, “ये attitude बिलकुल ग़लत है।आज की सुविधाएँ मेडिकल सहायता अच्छी हैं। अधिकांश बुज़ुर्ग ८५-९० वर्ष तक आराम से काट लेते हैं। आनेवाला समय बहुत बदलना है। महँगाई बहुत बढ़नी है। अंतिम पाँच सालों में ज़रूरतें कम हो जाती हैं पर medical सुविधाएँ महँगी होती हैं। पैसा जीवन के अंतिम चरण तक साथ चलना ही चाहिए।

अब मेरी बारी है बहुत सोच समझकर पापा के लिए नया जॉब नियत करना है। अब भी पाँच महीने बाक़ी हैं। सेवा निवृत्ति से पहले पन्द्रह दिन की छुट्टी लेकर हम सब भाई बहन आएँगे ताकि पापा के साथ गा सकें-

Country roads, take me home…..
To the place I belong………..

Image credit: singledadhouse.com

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बचपन से प्रकृति की गोद में पली-बढ़ी श्रद्धा बक्शी कवि और कलाकार पिता की कलाकृतियों और कविताओं में रमी रहीं। साहित्य में प्रेम सहज ही जागृत हो गया। अभिरुचि इतनी बढ़ी कि विद्यालय में पढ़ाने लगीं। छात्रों से आत्मीयता इतनी बढ़ी कि भावी पीढ़ी अपना भविष्य लगने लगी। फ़ौजी पति ने हमेशा उत्साह बढ़ाया और भरपूर सहयोग दिया। लिखने का शौक़ विरासत में मिला जो नए कलेवर में आपके सामने है......

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