चलते -चलते : व्यक्त-अभिव्यक्ति
यूँ ही मेज़ पर रखी मासिक पत्रिकाओं के पन्ने टटोलते हुए निगाह कुछ अभिव्यक्तियों पर पड़ी। मैंने उन्हें डायरी में अंकित कर लिया। दिल तक छू जानेवाली ये कविताएँ और उनमें भी कुछ पंक्तियाँ ऐसी, जो ज़ुबान पर बार -बार आएँ। कम शब्दों में अनुकरणीय और सटीक पेशकश…… मित्रों, ऐसी गागर में सागर जैसी बातों को क्यों ना गहराई से समझा जाए-
किसी भी लक्ष्य तक पहुँचने के लिए हमें भरसक प्रयत्न करने ही होते हैं। मनुष्य का मस्तिष्क उसे बहुत से रास्ते चुनने का मौक़ा देता है। मेहनत और धैर्य जीवन आगे बढ़ाता है और प्रकृति साथ देती है तो मंज़िल मिल ही जाती है। बक़ौल श्री श्री रविशंकरजी के, “There is no shortcut to success you have to work hard to reach your goal”.
कितने सरल और सुंदर शब्द हैं। शब्दों का सुंदर संयोजन साफ़ बता रहा है। हिम्मत करो कड़ी मेहनत कभी बेकार नहीं जाती। सिर्फ़ धैर्य की ज़रूरत है।धीरज से काम करो परिणाम अच्छा ही होगा।
दुख की घड़ियाँ हमसे काटे नहीं कटतीं पर उस समय यदि मन में ठान लें कि साहस से इन दूभर क्षणों से भी पार पा लेंगे। मानसिक शक्ति बड़ी से बड़ी जंग आसानी से लड़वा सकती है क्यूँकि इसके साथ आप के क़दम कभी ग़लत पड़ ही नहीं सकते। विपरीत घड़ियाँ बहुत कुछ सिखाने के लिए आती हैं उन्हें स्वीकारना आवश्यक है। अपने आप को सम्हालकर जो विपरीत परिस्थितियों में खड़ा नहीं हो सकता वही जीवन की लड़ाई में हारता है या misfit रहता है।
सुबह-सुबह मख़मली घास पर पड़तीं सूरज की किरणें ओस कणों से प्रतिबिम्बित होती हैं। हज़ारों सूर्य चमकते दिखते हैं पर इस ऊर्जा को ग्रहण करने के लिए कितने लोग उठकर बाहर आते हैं? किसी भी शुभ काम की शुरुआत के लिए हम मुहूर्त जानने को विकल रहते हैं। यदि प्रकृति से सामंजस्य स्थापित करें तो पाएँगे कि प्रतिदिन सुबह सूर्य की किरणें शुभ मुहूर्त लेकर ही आती हैं। तन-मन की थकान मिट चुकी होती है और मन नई उमंग से भरा होता है जब मन प्रफुल्लित हो बस वही क्षण शुभ मुहूर्त बन सकता है।
हर इंसान के जीवन में सफलता की ऊँचाई क़दम चूमती है, उस समय आपका व्यवहार समाज के सन्दर्भ में कैसा रहा, बहुत मायने रखता है। कहीं अहंकार का पुट आपको भुला तो नहीं रहा कि गगनचुम्बी ऊँचाई ऊपर तो ले जाती है पर उतनी ही तेज़ी से नीचे भी ला सकती है।जो जीवन का सार समझते हैं वो धरती की पकड़ कभी नहीं छोड़ते उनके लिए जीवन की ऊँचाइयाँ भी विनम्रता सिखाने आती हैं।
जनाब बशीर बद्र की इन पंक्तियों में कटाक्ष ऊँचे-ऊँचे ओहदों पर बैठे अफ़सरों की तरफ़ इंगित करता है ।
अफ़सरियत और पदवी अधिकार की शक्ति लाती है और शक्ति इंसान को भ्रष्ट कर सकती है। आम आदमी के प्रति मरती संवेदनशीलता और बढ़ता अहंकार उन्हें सबसे अलग कर देता है। इसलिए पदवी मिलने पर उसकी गरिमा को सम्हालना हर इंसान का कर्तव्य है। अपने भीतर की इंसानियत को हर हाल ज़िंदा करके रखने में ही भलाई है।
इन सभी पंक्तियों में ऐसा कुछ नहीं है जो पहले ना कहा गया हो या कभी सोचा ही न गया हो पर शब्द चयन और कहने का तरीक़ा इतना नायाब है कि जितनी बार पढ़ें उतनी बार गहरे छू जाती हैं।मित्रों, ऐसी ही पंक्तियों को अगर आप भी किसी ख़ूबसूरत सी डायरी में लिख लें तो कभी अकेलापन महसूस नहीं करेंगे, एक तो बार-बार पढ़ने का मन करेगा और उस कवि व लेखक से भी जुड़ेंगे जिनकी ये मौलिक सूझ हैं।