एक एम्ब्युलन्स, एक अस्पताल और मेरा जन्मदिन
१७ नवम्बर २०१५ की गहराती शाम, मैं अपनी बहन और माँ के साथ देहरादून में घर के टेरेस पर खड़ा यूँ ही हँसी मज़ाक़ कर रहा था। तभी मेरी बहन और मैंने निर्णय लिया कि चलो बाज़ार से केक ले आते हैं और माँ सड़क के पार पुजारी जी से मिलकर कल की पूजा के लिए समय ले लेंगी।१८ नवम्बर मेरा जन्म दिवस है जिसमें घर में पूजा और केक काटने की परम्परा रही है।
आधे घंटे बाद अचानक ही पापा की घबरायी आवाज़ में मुझे संदेश मिला। उनकी आवाज़ में बहुत चिंता झलक रही थी जो बहुत ही असामान्य थी,”मम्मी का ऐक्सिडेंट हो गया है जल्दी अस्पताल पहुँचो।” मैं और बहन वापस भागे, मन में आते बुरे-बुरे ख़यालों का कोई अंत ही नहीं था।
अस्पताल पहुँचकर हमने माँ को अर्धचेतन अवस्था मे रोते देखा। डॉक्टर ने हमें बताया कि इनके पैर में फ़्रैक्चर हो गया है आपको इन्हें किसी बेहतर बड़े अस्पताल में ले जाना होगा। मैंने बहुत सी एम्ब्युलन्स सर्विसेज़ को फ़ोन मिलाया पर आख़िर में एक एम्बयुलन्स २० मिनट बाद पहुँची। बहुत ही एहतियात से हमने मम्मी को लिटाया और ले कर चले।
सुबह २:३० बजे माँ के पास बैठे मुझे याद आया कि अब तो १२ बज चुके फ़ोन देखूँ तो देखा कि बैटरी डाउन थी खुला ही नहीं, मेरी बहन ने तुरंत मेरी तरफ़ देखा और फुसफुसा के बोली, “हैपी birthday”.
पूरे दिन मैं माँ की देखभाल में ही लगा रहा, डॉक्टर से मिलने, अस्पताल बदलने, ऑपरेशन के लिए blood की लम्बी क़तार में, रिपोर्ट्स लेकर आने में और रिश्तेदारों व मित्रों के फ़ोन के जवाब देने में मेरे अपने मित्रों की कॉल्ज़ या फ़ोन पर बधाई संदेशों की प्राथमिकता बन्द करनी पड़ी।
कुछ लोग सोचेंगे कि जन्म दिन मनाने के लिए कितना दुर्भाग्यपूर्ण दिन था, ऐसा शुरू में मुझे भी लगा पर दिन बीतते- बीतते और माँ के ऑपरेशन के बाद सप्ताह निकलते मेरे दृष्टिकोण में बदलाव आया। मैं बहुत ही कृतज्ञ महसूस करने लगा।
अस्पताल के गलियारे में बैठे, कभी कहीं गहराई में मैंने सीखा कि दुर्घटना से भी जीवन में बहुत कुछ सीखा जा सकता है ।
महान ऐफ़्रो अमेरिकन कवयित्री Maya Angelou ने ऐसी स्थिति में बादलों में इंद्र धनुष देखने की पैरवी की है।
माँ को सही इलाज मिलने में बहुत असम्वेदनशीलता,दर्द और इलाज मिलने में देरी का कष्ट झेलना पड़ा पर मैं उन पड़ोसी अंकल का बहुत आभारी हूँ जिन्होंने माँ को तुरंत पहचाना और दुर्घटना स्थल से पापा को फ़ोन से सूचित किया। ऐम्ब्युलन्स वाले भैया ने कम से कम साइरन बजाया क्यूँकि उससे माँ को डर लग रहा था। उस नर्स का मैं आभारी हूँ जिन्होंने माँ के पैर के नीचे एक्स्ट्रा तकिया लगाया, उस व्यक्ति का जो अपने मरीज़ की देखभाल छोड़कर हमारे लिए पानी की बॉटल लाया। मेरी एक पुरानी मित्र का जो उस अस्पताल में नर्स थी और उसने मुझे वहाँ से किसी और अस्पताल में ले जाने का सुझाव दिया ।
उस नए अस्पताल का जहाँ बहुत हँसमुख स्टाफ़ था और डॉक्टर जो आज के ज़माने में भी सिर्फ़ ३० रुपए लेते थे। उन रोगियों का जिन्होंने माँ से उत्साह वर्धक शब्द कहे और सभी रिश्तेदारों और मित्रों का जो ख़बर सुनते ही मिलने आए।
मैं धन्यवाद देना चाहता हूँ उन क्षणों को जब मैं अपनी माँ की देखभाल कर सका, आंशिक रूप से ही सही पर उनकी सेवा के रूप में कुछ समय दे सका जो उन्होंने इतने सालों में मुझे दिया। मेरी बहन का जिसने बहुत ख़ूबी से घर, ऑफ़िस और आने जाने वालों को सम्हाला। अपने पिताजी का जो दवाइयों और दर्द के बीच भी हँसी ख़ुशी का माहौल बनाते रहे।
और सबसे ज़्यादा उन लमहों का जिनमें मुसीबत सिर्फ़ पैर के फ़्रैक्चर तक ही सीमित रही और आगे नहीं बढ़ी। जो कुछ भी इस बीच घटा उसमें मेरे जन्म दिन का ख़याल भी नहीं आया जबकि उन पलों के प्रति धन्यवाद की भावना से मन भरा रहा जिनमें असीम शांति, आनंद और आराम का अहसास भरपूर रहा, उन मुसीबत के पलों में मेरा हृदय मुझे बार-बार याद दिलाना चाहता है और रुक कर फिर से ईश्वर का शुक्रिया कहना चाहता है।