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मैं तो सोच भी नहीं सकती थी कि सुबह 5 बजे मेरी आँख खुल जाए। इतनी सुबह उठने के लिए एक या दो नहीं बल्कि लगातार चार से पांच अलार्म लगा कर सोना पड़ता था या फिर कोई दो- चार आवाज़ लगाए। सारे नहीं लेकिन मैंने अपने अधिकांश दोस्तों के साथ ऐसा ही होते देखा है।फिर मैं अक्सर सोचा करती थी कि माँ आखिर बिना किसी अलार्म के कैसे उठ जाती हैं ? बचपन से लेकर अब तक सुबह बिल्कुल सही समय पर उठकर माँ काम करने लगती थीं।

मेरा और भाई का अलग टिफ़िन बनाना, पापा का भी टिफ़िन बनाना, तीनों की यूनिफॉर्म तैयार करना, पानी की बोतलें भरना।  सुबह 4:45  उठकर और 7 बजे तक सारा काम खत्म। अब अगर माँ को भी हमारे जैसे चार या पांच अलार्म की ज़रूरत लगती, तो ना पापा ऑफिस पहुंचते समय पर और ना हम स्कूल।  मेरे लिए मानों इतनी सुबह उठना नामुमकिन सा ही था। फिर चाहे स्कूल जाना हो, कॉलेज या फिर ऑफिस ही क्यों ना जाना हो। लेकिन इस कोरोना काल के समय घर रहकर मेरी यह  सोच गलत साबित हो गई कि बिना अलार्म के उठा नहीं जा सकता। मानों या न मानों इस लॉकडाउन ने हर किसी को बहुत कुछ सिखाया है।

12 जून 2020 को मैं भी माँ की तरह सुबह 5 बजे उठी, वो भी अलार्म के ठीक 10 मिनट पहले। आपको भी आश्चर्य लग रहा होगा कि ऐसा आखिर हुआ कैसे ? मैं खुद चकित थी कि आज तक ऐसा नहीं हुआ कि मैं अलार्म से पहले उठ जाऊं। रेलगाड़ी भी पकड़नी हो सुबह की, तो बिना अलार्म या माँ के फ़ोन के बिना नहीं उठ पाती थी। लेकिन इस बार एक ज़िम्मेदारी थी, उद्देश्य था कि सुबह उठकर, समय से पापा के ऑफिस के लिए टिफिन तैयार करना है।माँ की तबीयत एक रात पहले ख़राब हो गई थी और पापा रेलवे में हैं तो ‘वर्क फ्रॉम होम’ जैसा कुछ मुमकिन नहीं था और अब मैं भी कोई छोटी बच्ची नहीं थी इसलिए इस बार ज़िम्मेदारी मेरे ऊपर थी। रात को सोते समय यही सोचते-सोचते सो गई कि क्या काम कैसे करना है। सुबह अपने आप आँख भी खुल गई।  माँ जिस तरह फुर्ती से रसोई के काम करती हैं उतनी फुर्ती से काम करने के लिए मुझे थोड़ा जल्दी उठना पड़ा, इतना अभ्यास जो नहीं था तो पापा ने भी मदद करवाई । मैंने पापा का टिफिन तैयार किया, उनका ऑफिस बैग फिट किया और वो समय से चले गए।  तब जाके सुकून की सांस आई और एक अलग ही ख़ुशी थी अपनी ज़िम्मेदारी पूरी करने की।शायद आपको इस घटना को पढ़कर लगे कि ये तो बड़ी साधारण बात है। हाँ ! साधारण तो है लेकिन इसमें एक बहुत महत्त्वपूर्ण सन्देश छिपा है।“ज़िम्मेदारी व उद्देश्य एक अविश्वसनीय अलार्म घड़ी है।” (Purpose is an incredible alarm clock)हमारा अवचेतन मन हमारा सबसे बड़ा निदेशक है ।


यह विचार मैंने बहुत जगह पढ़ा व सुना था किन्तु इसका असल अर्थ अब समझ आया है। आपके साथ इसे साझा करने का यही एक मक़सद है कि अपना एक उद्देश्य निर्धारित कीजिए और उसे अपनी एक ज़िम्मेदारी समझिये। आपको स्वयं यह एहसास होगा कि आपको 4 या 5 निरंतर अलार्म या किसी के आवाज़ लगाने की ज़रूरत नहीं है।आप खुद से ही समय से उठकर अपने सारे कार्य करने में सक्षम होंगे और एक ख़ुशी व उत्साह अपने जीवन में पाएंगे।विचार कीजिए कि ऐसा कौन सा उद्देश्य है जो आपको बिना किसी अलार्म के उठने पर मजबूर कर दे ? फिर बस एक लक्ष्य निर्धारित करके उसमें संपूर्ण लगन से जुट जाएं और सफलता प्राप्त करें ।

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