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टेक्नोलॉजी , हिंदी ब्लॉग

क्या आपने कभी सोचा है कि पहले कैसे हम दिल्ली जैसे शहरों में भी आसानी से रास्ते याद रख लेते थे? लेकिन आज के समय में बिना गूगल मैप के छोटे रास्ते भी याद नहीं रहते। माना गूगल मैप लम्बी दूरी तय करने में, या फिर अनजानी जगह पहुंचाने में काफी मददगार  है।  लेकिन इसकी वजह से हमने अपने दिमाग द्वारा सोचना या फिर चीज़ें याद रखना पहले की तुलना में कम कर दिया है। हम इन नई तकनीकों पर इतना निर्भर हो गए हैं कि अपनी बुद्धि इस्तेमाल करना कम कर चुके हैं। और ये गूगल मैप क्या है, अर्टिफिशियल इंटेलिजेंस द्वारा निर्मित एक ऐसी तकनीक जिसके होते हुए आपको अपने दिमाग को कष्ट देने की ज़रूरत नहीं हैं।  ये तो मात्र एक उदाहरण, ऐसी बहुत सी चीज़ें हैं, जैसे अपना पासवर्ड सेव कर लेना, जिनके  होते हुए हमें ज़्यादा सोचने की ज़रूरत ही नहीं है, काम आसानी से हो जाएगा।

अब बात करते हैं कि आखिर ये अर्टिफिशियल इंटेलिजेंस है क्या ?

यदि हम सोचें कि इस ब्रह्माण्ड में सबसे जटिल चीज़ क्या है? तो आपका जवाब क्या होगा?

जवाब कहीं और नहीं बल्कि आपके दिमाग में ही है। क्यूंकि वो जवाब है आपका दिमाग। जी हाँ, सबसे जटिल नेटवर्क या सबसे ताकतवर सिस्टम भी उसकी बराबरी नहीं कर सकता। आर्टिफीसियल इंटेलिजेंस जिसकी चर्चा हर आदमी करता है, उसका अंतिम लक्ष्य है ऐसा कंप्यूटर दिमाग बनाना जो इंसानी दिमाग की तरह सोच सके। सामान्य आर्टिफीसियल इंटेलिजेंस के उदाहरण हमारे चारों ओर मौजूद हैं, जैसे एप्पल का सीरी, फेसबुक पर फ्रेंड्स रिकमेन्डेशन।  ये आपकी कार में है, आपके घर में है, और एयर ट्रैफिक कण्ट्रोल में भी है।  कई वर्षों से AI हमसे बेहतर काम कर रहा है और आगे चलकर ये वो सब कर पाएगा जो एक इंसान कर सकता है बल्कि इंसान से कई बेहतर।

तो अभी ये एक चुनौती है जो आगे चलकर खतरा भी बन सकता है।

यदि आप  वर्तमान स्थिति को ठीक से समझे तो आप ये जान पाएंगे कि हमारी सोचने की शक्ति बहुत हद्द तक क्षीढ़ हो चुकी है। फिर एक उदाहरण लेते हैं, आज कल की पीढ़ी ना तो अखबार पढ़ती है और नाही मैगजीन्स। अखबार व मैगजीन्स में छपने वाली खबरें व विशेष लेखकों द्वारा लिखे गए लेख पढ़कर सोचने की क्षमता गहरी हो जाती थी। कित्नु आज कल बच्चे बस 60 शब्दों में सब समझ लेते हैं जिसके कारण सोचने की प्रक्रिया व तकनीकी संकायों का विकास रुक जाता है।

क्या आप पहले की तरह अपने बिज़नेस से जुड़े निर्णय लेने में सक्षम होते हैं ? शायद से नहीं, हाल ही में हुए बिज़नेस कम्पनीज के एक सर्वे ने बताया कि AI शुन्य से लेकर आपका और मार्किट के सारे डाटा का परिक्षण करके आपको निर्णय लेने में सहायता करता है। यानी आपको अपना दिमाग खर्च करने की ज़रूरत है ही नहीं।

इस बात से ये भी पता लगता है कि यदि इंसानों द्वारा लिए जाने वाले निर्णय ये कंप्यूटर मशीन लेने लगेंगी तो इंसानों की ज़रूरत कम हो जाएगी। एक किताब है, “21 लेसन ऑफ़ 21st सेंचुरी ” जिसमें लीखा हुआ है कि पेशेवरों को नौकरी से निकालकर आर्टिफीसियल इंटेलिजेंस की मशीनों द्वारा काम करवाया जाएगा। उदाहरण के तौर पर जापान की अनेकों कंपनियां जहाँ रोबोट इंसान की तरह काम करता है ।

ये तो मानों इंसानों ने अपने बेरोजगारी को स्वयं ही बुलावा दिया है। तकनीक को इतना महत्तव दिया कि खुद की कीमत बहुत हद्द तक कम करदी। ये कंप्यूटर दिमाग की रचना भले ही इंसान के भले के लिए की हो लेकिन ये संपूर्ण मानव जाती को परेशान करने में सक्षम रहेगी। आप अपने कोई भी निर्णय लेने में सक्षम नहीं होंगे आपके सोचने की शक्ति पूर्णतः इन तकनीकों के नियंत्रण में होगी। जिस प्रकार आपका मोबाइल फ़ोन बहुत सी ऐप द्वारा आपकी पसंद, ना पसंद, आपको किस बात से गुस्सा आता है, किस बात से नहीं आता है, आप किस विचार का समर्थन करते हैं, और किस का नहीं करते हैं, इस प्रकार की सभी जानकारी इक्कठा करके आपके ऊपर मनोवज्ञानिक रूप से नियंत्रण बनाया जा रहा है।

आज की दुनिया में प्रत्येक आने वाली परिस्थिति का अंदाज़ा पहले से ही लगा लिया जाता है । इसलिए बिग डाटा स्टोरेज , अर्टिफिशियल इंटेलिजेंस जैसी तकनीकों का भविष्य भी बहुत से वैज्ञानिकों व प्रोफेसर्स ने अपनी  रिसर्च के ज़रिए बताया है कि हमारा जनतंत्र यानि डेमोक्रेसी पर भी कृत्रिम बुद्धिमत्ता का नियंत्रण हो सकता है ,जिसका मतलब है कि वो डेमोक्रेसी रह ही नहीं जाएगी।  आपकी सोच, विचार व भावनाएं, ये सभी आपके नियंत्रण से एक हद तक बाहर होंगे क्योंकि मनोवैज्ञानिक किसी न किसी तकनीक से इनपर भी काबू करने में सक्षम हो सकते हैं। जो कि निसंदेह एक बहुत बड़ा खतरा है परन्तु इसके बहुत से फायदे भी होंगे क्योंकि हर तकनीक के फायदे व नुक्सान दोनों ही होते हैं। लेकिन अपनी सोचने की समझ को दाव पर लगाकर तकनीकी फायदा पाना संपूर्ण दृष्टिकोण में नुक्सान के सामान ही होगा।

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