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मेरे सभी पुत्रों और पुत्रियों,

मैं अब 93 वर्ष का हो चला हूँ। मैं भारतीय आर्मी का एक सेवानिवृत्त लेफ्टिनेंट जनरल हूँ। शायद अभी तक पुराने ज़माने से ताल्लुक रखता हूँ। मैं जीवन के अन्तिम प़ड़ाव में चल रहा हूँ। मैंने विवाह नहीं किया, मेरा अन्य कोई परिवार नहीं है। मेरे जियू (Jew) वंश की आखिरी पहचान मेरे साथ ही हिन्दुस्तान और धरती से समाप्त हो जाएगी। मेरे अपने बेटे और बेटियॉं नहीं हैं। इसीलिए यह पत्र मैं आपको लिख रहा हूँ। हालॉंकि मुझे अपने जि्यू होने पर गर्व है पर मैं भीतर-बाहर पूरी तरह से भारतीय हूँ। मैं चाहता हूँ कि आप भी भारत को अपनी मुख्य पहचान बनाएँ।

आर्मी के जीवन ने मुझे ड्यूटी का महत्व सिखाया है। सर ऊँचा करके खड़े होना और देश के प्रति कर्तव्य में कभी न लड़खड़ाना सिखाया। देश के लिए जान दे देना हमारा परम कर्तव्य है। आर्मी सिखाती है कि तुम्हें वही करना है जिसे तुम सही समझते हो, कोशिश करते रहना, देखना, ढूंढना और फ़तह हासिल करना महत्वपूर्ण है। यही एक तरीका है अपने प्रति वफ़ादार रहने का भी।

मुझे सबसे अधिक चिन्ता तेजी से बढ़ते गरीबों को देखकर होती है। जो समर्थ युवा हैं उन्हें इस परिस्थिति को सुधारने की जिम्मेवारी ले लेनी चाहिए। मैं जब देश के युवाओं से बात करता हूँ मैं पाता हूँ आप सब हमारी पीढ़ी से कहीं बेहतर प्रशिक्षित और व्यवसाय में निपुण हैं। आपकी पुख्ता आर्थिक और राजनीतिक कार्यशैली इस बदलाव को ला सकती है। अपने देश की तरफ ध्यान दो।

बेटों, महिलाओं की इज्ज़त करो। मुझे यह समझ ही नहीं आता कि महिलाओं के प्रति अपराध कैसे पनप सकता है? मेरे पास इसका कोई उत्तर नहीं है। मैं सिर्फ उन लोगों से अपील कर सकता हूँ जो मुझे सुनना चाहते हैं।

मैं अब जाने की कगार पर हूँ पर तुम तो अभी नए ज़माने की शुरुआत हो। अपनी सोच में बदलाव के साथ आरम्भ करो। अगर मैंने विवाह किया होता तो मैं चाहता कि मेरे बेटे और बेटियॉं आर्मी में ही नौकरी करें। सेना में ज़िन्दगी साफ़ सुथरी, अनुशासित और उद्देश्यपूर्ण है। इस कैरियर को अपनाने की बात सोचो लेकिन समझ लो कि आर्मी की ज़िन्दगी सिर्फ डान्स, गाना और स्कॉच का गिलास नहीं है। मैं तुम्हें बताना चाहता हूँ कि मेरा प्रिय ड्रिंक पानी का गिलास है।

यह पत्र देश के नौजवानों के नाम ले.जनरल जैक फर्ज रफेल PVSM ने लिखा था। इन्होने 13 जनवरी 2016 के दिन दिल्ली में अन्तिम सॉंस ली। Indo-Pak war 1971 में इन्होने अहम भूमिका निभाई थी। इनके बहुत मेहनत व ध्यान से बनाए दस्तावेज पर ही जनरल नियाजी ने हस्ताक्षर किए थे। लड़ाई में पाकिस्तानी आर्मी की स्थिति बिगड़ती जा रही थी उस समय आलाकमान ने इनपर पकिस्तानी आर्मी के आत्मसमर्पण का भार सौंपा। जनरल नियाज़ी पर दबाव बनाना और समझाना भी इनके ही जिम्मे था जो किसी भी क्षण उल्टा पड़ सकता था पर इन्होने इतनी खूबी से उस प्रकरण को सुलझाया कि पाकिस्तानी आर्मी भी समर्पण का श्रेय इन्हें ही देती है।

यह एक ऐतिहासिक क्षण था जिसने ईस्ट पाकिस्तान को सोनार बांग्लादेश में परिवर्तित होते देखा।

1978 में जनरल जेकब रिटायर हो गए और उसके बाद गोवा और पंजाब के गवर्नर रहे।

जनरल जेकब के विलक्षण जीवन से हमें कुछ महत्वपूर्ण शिक्षाएं मिलीं-

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बचपन से प्रकृति की गोद में पली-बढ़ी श्रद्धा बक्शी कवि और कलाकार पिता की कलाकृतियों और कविताओं में रमी रहीं। साहित्य में प्रेम सहज ही जागृत हो गया। अभिरुचि इतनी बढ़ी कि विद्यालय में पढ़ाने लगीं। छात्रों से आत्मीयता इतनी बढ़ी कि भावी पीढ़ी अपना भविष्य लगने लगी। फ़ौजी पति ने हमेशा उत्साह बढ़ाया और भरपूर सहयोग दिया। लिखने का शौक़ विरासत में मिला जो नए कलेवर में आपके सामने है......

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