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माइक पर ईश्वर के प्रति कृतज्ञता प्रकट करते हुए डॉक्टर बेनीप्रसाद भविष्य के युवा लीडर्ज़ को सम्बोधित कर रहे थे।

इंडियन हैबिटैट सेंटर में एक शख़्स अपने अजूबे गिटार के साथ प्रविष्ट हुए। उनकी और गिटार की छटा निराली थी। स्वयं भी रोचक आकर्षक व्यक्तित्व के धनी लगे। लम्बे घुंघराले बाल, हाथों में ढेरों फ़्रेंड्शिप बैंड, आँखों में निरीह सौम्यता और कंधे पर अनेकों स्ट्रिंग्स का गिटार। जिसमें दो ड्रम भी दिख रहे थे। उन्हें देखते ही युवाओं की cheering सुनकर लगा बहुत लोकप्रिय भी हैं।

‘बेनटार’ इनके स्वनिर्मित बांगो-हॉर्प गिटार का नाम है। इसमें इन्होंने बांगो और टर्किश ड्रम फ़िक्स किए हैं। इस गिटार के साथ आजतक बेनी ने बहुत से राष्ट्रपतियों, कई देशों के संसद, विश्व विद्यालयों और 2007 विश्व मिलिटरी गेम्ज़, ऑर्किड फ़ेस्टिवल सिंगापुर, क्रिसमस फ़ेस्टिवल सिंगापुर आदि के सामने बजाया है।

डा. बेनीप्रसाद का जन्म 6 अगस्त 1975 के दिन बैंगलोर में हुआ। बेनी शब्द का हिब्रू में अर्थ है- माई सन, (God’s son)।

बेनी की माँ ने क्रिश्चियन FEBA रेडिओ में 34 वर्ष तक काम किया। उन्हें लॉर्ड जीसस पर पूर्ण विश्वास था। वो हमेशा ईश्वर की सराहना करते म्यूज़िक से घिरी रहती थीं।

बेनी ऐसे ही संगीत ध्वनियों से बना शिशु था। उस समय माँ नहीं समझ पायीं थीं कि उन्होंने एक संगीतज्ञ बालक को जन्म दिया है जो विविध फ्रीक्वेंसीस से संगीत बना सकेगा। ऐसा संगीत जो शांति, सौहार्द और प्रेम को बढ़ावा देगा। बेनी के पिता ISRO नैशनल एरोस्पेस लैबारेटरीज़ में वैज्ञानिक थे। सभी चाहते थे कि बेनी उनकी तरह साइंस और गणित में महारथ हासिल करे पर बेनी को इनमें कोई दिलचस्पी नहीं थी।

बेनी के अद्भुत जीवन प्रसंगों को जानकर हमें अतीव लालसा जागी कि उनके बारे में कुछ और जानकारी लेनी चाहिए। हमने उनका इंटरव्यू लिया और जो जानने को मिला वह कौतूहल को समेटता आश्चर्यजनक तथ्य था। बेनी का जीवन उस बालक के लिए बहुत पॉज़िटिव मिसाल है जो ‘I am not ok syndrome’ से पीड़ित है, डिप्रैस्ड हैं। जो स्वयं की असफलताओं से जूझ रहा है।

कभी कहीं पढ़ा था कि मनुष्य का गिरना बहुत आसान है पर गिरकर उठना और आगे बढ़ने की हिम्मत करना ही असली जीना है।

साक्षात्कार:

डा.बेनी प्रसाद की उपलब्धियों में उनका संसार का सबसे तेज़ संगीतज्ञ यात्री होना है जो विश्व के सभी 245 देशों की यात्रा 6 साल, 6 महीने, 22 दिनों में तय कर चुके हैं। हमने प्रश्नों के साथ ही साथ उनसे जीवन की कुछ शिक्षाएं भी ग्रहण कीं।

प्रश्न: “आप अपनी यात्राओं के बारे में बताइए।”
बेनी: “1 मई 2004 से 22 नवम्बर 2004 के बीच मैं सभी 245 देशों की यात्रा कर पाया जिसमें 194 देश स्वतंत्र, 45 आधीन और 1 एंटार्क्टिक में अपने संगीत का कार्यक्रम किया। लिम्का बुक अव वर्ल्ड रेकार्ड में नाम दर्ज हो चुका है। मेरे पास तक़रीबन 18 इंडियन पासपोर्ट बुक्स हैं एक दूसरे से जुड़ी हुई हैं। मुझे उन्हें दिखाने में कोई संकोच महसूस नहीं होता।

सभी देशों का वीज़ा मिलना आसान नहीं था। दूर-दराज के देशों तक पहुँचना बहुत ही कठिन कार्य था।

सन 2002 में मेरा सपना था कि किसी एक युरोपियन देश की यात्रा कर लूँ पर दिक्कतें बहुत थीं। पहली यात्रा 1998 में मैं श्री लंका के कोलम्बो हो आया था लेकिन 2002 में कुछ ऐसी नैसर्गिक प्रेरणा मिली कि मुझे संसार के हर देश में ईश्वर का आशा, शांति और प्रेम का संदेश सुनाने के लिए चुना गया है। संगीत की भाषा सभी समझते हैं। हृदय से स्वीकारते हैं। मेरे पास जितना धन था उससे मैंने Aeroflot एअरलाइन्स की फ़्लाइट का टिकट मॉस्को के लिए ले लिया। मेरे पास ECNR क्लीयरेन्स नहीं थी पहली उड़ान ही रद्द करनी पड़ी। अगले दिन चला, मॉस्को में उतरा वहाँ के अधिकारियों ने एअरपोर्ट से बाहर जाने के लिए मुझसे 50 डालर्ज़ रिश्वत माँगी। मैं अडिग था रिश्वत नहीं दूँगा। उन्होंने 30 घंटे एअरपोर्ट पर रखकर मुझे वापस दिल्ली भेज दिया। मैं भारी मन लिए वापस लौटा। अगले दिन मैंने किसी तरह कुछ और धन इकट्ठा किया और लंदन के लिए फ़्लाइट ली वाया टॉश्कंद। वहाँ फिर लंदन की फ़्लाइट पकड़ने के लिए रिश्वत माँगने लगे, मैं अड़ा रहा। आखिर 14 घंटे बाद मुझे लंदन जाने दिया गया। वहॉं से लात्विया का वीज़ा मिल गया और मेरा पहला इंटर्नैशनल कॉन्सर्ट टूर शुरू हो गया।वहॉं से मैंने 22 कॉन्सर्ट किए। पूरी तरह तक़रीबन 55 कॉन्सर्ट पाँच देशों में सिर्फ 2 महीनों में।”

मेरा यह विश्वास है कि भ्रष्टाचार को कभी बढ़ावा नहीं देना चाहिए। किसी कीमत पर नहीं।

प्रश्न: “आपकी अविस्मरणीय यात्राएँ कौनसी रहीं?”
बेनी: “ऐंटार्क्टिका, पिटकेअर्न और नॉर्थ कोरिया।”

प्रश्न: “इनके बारे में कुछ बताइए।”
बेनी: “ऐंटार्क्टिका की यात्रा मेरे लिए चुनौतीपूर्ण थी। वहाँ की ठंड और मेरी आर्थ्राइटिस की बीमारी मुझे रोक रही थी। इसे मैं छोड़ देना चाहता था। लेकिन ईश्वरीय कृपा से 3 दिसम्बर 2009 को मैंने बैंगलोर से साढ़े 34 घंटे की उड़ान भरी वाया- पेरिस-अट्लांटा-सैंटीआगो-पुण्टा अरीना-किंग जॉर्ज आयलैंड। वहाँ मैंने चिल्लीयन जियोलोजिस्ट वैज्ञानिकों के लिए कॉन्सर्ट किया। वहॉं 6 घंटे रहा और प्राकृतिक आनंद भी लिया।ग्लेशियर, पेंग्वंज़ सब देखे फिर साढ़े 34 घंटे की यात्रा करके वापस आया।

पिट्केअर्न पैसिफ़िक के कोने में स्थित एक आयलैंड है। यह इंग्लैंड के आधीन है। पैसिफ़िक सागर में फ़्रेंच पोलिनेशिया के मैनगरेवा से बोट द्वारा जाते हैं जिसमें दो दिन लगते हैं और मज़ेदार बात यह है कि यह बोट 3 महीने में एक बार ही जाती है। बहुत कोशिशों के बाद मैं वहाँ 3 अप्रैल 2010 को पहुँच पाया और मैं ही 200 साल के इतिहास में पहला व्यक्ति था जिसने वहाँ कॉन्सर्ट किया। वहाँ की जन संख्या कुल 66 व्यक्ति है जिनमें से 52 लोग मेरा कॉन्सर्ट सुनने आए। तक़रीबन 80 प्रतिशत जनसंख्या।

अब आयी बारी नॉर्थ कोरिया की। वहाँ कोई जाने की हिम्मत करता। मुझे जाना मिला। डर इतना था कि मैं अपने घरवालों को गुडबाय बोलकर गया था। वहाँ हर समय मेरे साथ दो जासूस रहते थे। मैं उनके साथ भी जीज़स और बाइबिल की बात कर रहा था । कॉम्युनिस्ट देश होने के कारण ये भी अपराध था। वहाँ तीन सौ आर्टिस्ट्स में से पहले बारह को ईनाम मिला जिसमें एक मैं भी था।

मेरे सभी कार्यक्रम नैसर्गिक प्लान के आधीन चल रहे थे 2009 में मुझे पता चला कि अगर सात देश और घूम लूँ तो वर्ल्ड रेकार्ड धारक काशी समद्दर के रेकार्ड को मैं तोड़ सकता हूँ, तब तक वर्ल्ड रेकार्ड की कोई सूचना भी नहीं थी मुझे। कुछ ऐसा प्लान बना कि जल्द ही मैं 244 देश पूरे कर सका। अब सिर्फ़ पाकिस्तान रह गया। मैंने पाकिस्तान एम्बेसी में पता किया। वीसा सिर्फ़ दो ही कारणों से मिल सकता था या तो पाकिस्तान सरकार का बुलावा हो या मेरा कोई सगा सम्बंधी हो। मेरा तो कुछ भी नहीं था । समय बीतता जा रहा था। वहाँ से NOC माँगा वह भी नहीं मिला। मैंने चार दिनों में 344 फ़ोन कॉल कीं पर जवाब ना मिलना था तो नहीं मिला। मैंने सब ईश्वर पर छोड़ दिया और 29 अप्रैल 2010 के दिन Pyongyang उत्तरी कोरिया पहुँचा। मुझे Yanggak do होटल में 43 वीं मंज़िल पर ठहराया गया। मैंने लिफ़्ट ली और 32 वीं मंज़िल पर पहुँचा ही था कि वहाँ से दो पाकिस्तानी महानुभाव लिफ़्ट में आ गए। उन्होंने मुझे देखा, और ग़ौर से देखा और पूछा कहाँ से हो? मैंने बताया। जब मैंने उनसे पूछा तो उन्होंने बताया कि वे एक सरकारी दल के साथ हैं और पाकिस्तानी पार्लियामेंट के मेम्बर हैं। मैंने उन्हें बताया कि मेरी यात्राओं की लिस्ट में पाकिस्तान ही एक देश रह गया है। उन्होंने मुझे रात दस बजे मिलने को बोला। मैं भी गिटार के साथ उनके पास पहुँच गया। उन्होंने बहुत प्यार से, इज़्ज़त से मेरा संगीत और कहानी सुनी।बहुत सराहना भी की और आश्वासन दिया कि मेरी मदद करेंगे। यह सब किसी चमत्कार से कम नहीं था। नॉर्थ कोरिया में पाकिस्तानी वीज़ा का इंतजाम! कुछ दिनों बाद मुझे पाकिस्तानी राजदूत की कॉल आयी और उन्होंने 22 November को 10 मिनट्स में वीज़ा देने का वायदा किया। 22 नवम्बर 2010 के दिन मैं कराची में था और मैं रिकॉर्ड बना चुका था।

245 देश ऐंटार्क्टिका समेत 6 साल, 6 महीने, 22 दिन में पूरे कर लिए।”

स्वप्न अवश्य देखो पर मानवता का ध्यान कभी न छूटे। संगीत की भाषा यूनिवर्सल भाषा है सभी समझते हैं।

प्रश्न: “बेनी आप अपने बचपन के बारे में कुछ बताना चाहेंगे? आपको संगीत की तरफ़ आने की प्रेरणा कैसे मिली? आपके जीवन का सबसे प्रेरक व्यक्ति?”
बेनी: “मेरा बचपन बहुत ही विरोधाभासों से शुरू हुआ। मैं एरोस्पेस वैज्ञानिक का पुत्र हूँ। घर, समाज, विद्यालय सभी के आदर्शों का पुलिंदा। सभी को मुझसे बहुत सी अपेक्षाएँ थीं। पढाई में अच्छा न कर पाने से मैं उस समाज से दूर होता गया जो मम्मी-पापा का दायरा था, पर घर और स्कूल से भी दुखी था। पापा मैथ्स और साइन्स पढ़ाते थे। मुझे कुछ समझ नहीं आता था। हम गर्मियों की छुट्टी में गुंटूर जाते थे जहाँ सभी रिश्तेदार अपने-अपने बच्चों की उपलब्धियों की प्रशंसा करते थे। वे दिन बिताना मेरे लिए अत्यंत कष्टकारी था। घरवाले मुझे अपने भाई-बहनों का आदर्श बनाना चाहते थे पर मेरी मानसिक स्थिति समझने में पूरी तरह नाकाम थे।पढ़ाई मेरा क्षेत्र नहीं थी। पिता की बार-बार ड्रिलिंग ने मुझे उनसे और स्कूल से दूर कर दिया। स्कूल के लिए मैं निकम्मा, बेकार बालक था।

धीरे-धीरे मैं झूठ बोलने में माहिर हो गया। मैं गर्म और चिड़चिड़े स्वभाव का हो गया। मन में कहीं कुछ फँस गया था कि मैं किसी लायक नहीं। इससे स्वास्थ्य बिगड़ गया, मुझे दमा ने घेर लिया। मुझे दो वर्ष की उम्र से सोलह वर्ष तक ग़लत कॉर्टिज़ोन स्टेरॉइड दवाइयों का सेवन करना पड़ा जिससे rheumatoid arthritis के लक्षण उभर गए। मेरे 60% फेफड़े बेकार हो चुके थे। शरीर बिलकुल बीमारियों से लड़ने की क्षमता खो चुका था। मुझमें जल्द ही अवसाद depression दिखने लगा। डाक्टर्ज़ ने जीवन की आशा बतायी सिर्फ़ छह महीने। मैं घिरा हुआ था। अवसाद, शारीरिक बीमारियों और प्रबल हीन भावना से ग्रसित हो गया। यह सब नकारात्मक व्यवहार था जो सब तरफ़ से मुझे मिला था।

एक माँ ही थीं जो मेरे गहरे दुःख में साथ देती थीं। उन्होंने मुझे रिट्रीट सेंटर YWAM ले जाने की कोशिश की। तबतक मैं एक असफल आत्महत्या की कोशिश कर चुका था। मैंने उनकी बात मानी और Youth with a मिशन संस्था में दाखिला ले लिया। YWAM ने मुझे Associate of Arts से भी नवाज़ा।”

(उपर्युक्त प्रसंग से मिली शिक्षा सभी स्वयं समझ सकते हैं खासकर अभिभावक)

प्रश्न: “क्या आप अपने school भी वापस गए?”

बेनी: “हाँ, 2006 में मुझ को केंद्रीय विद्यालय NAL ने प्रमुख दस stalwarts में से एक घोषित किया। माननीय चेयरमैन ISRO, श्री वी महादेवन ने यह सम्मान दिया।
स्कूल में पढ़ने वाला बच्चा असली जीवन में प्रवेश करते ही 360 डिग्री बदल जाता है।उसे उत्साहित करते रहें।”

प्रश्न: “बेनी अपने जीवन पर माँ के प्रभाव का असर बतलाइए।”
बेनी: “माँ ने सच्ची प्रार्थना का महत्त्व समझा दिया।”

परिवार में कोई एक सूत्र ऐसा होना चाहिए जो बच्चे को ह्रदय से समझ सके। निराश मन सिर्फ प्रेम की भाषा सुन पाता है।

प्रश्न: “अापने संगीत सीखने के लिए क्या प्रयत्न किए? अपना बेनटार बनाने की प्रेरणा कहाँ से मिली?”
बेनी: “बाइबल म्यूज़िक स्कूल में सभी कोई न कोई वाद्य बजाते थे। मैं भी गिटार बजाना चाहता था। मैं गिटार टीचर के पास गया। मैं तब 19 वर्ष का भी नहीं था। पहले दिन ही उन्होंने घोषित कर दिया कि मुझे संगीत का ‘स’ सीखने की भी क्षमता नहीं है और क्लास में समय व्यर्थ ना करने की सलाह दी। मेरे पास गिटार strings ख़रीदने के लिए भी पैसे नहीं थे। मैंने बच्चों की टूटी स्ट्रिंग इकट्ठी करनी शुरू की। लॉर्ड जीज़स से प्रार्थना की कि आप मेरे संगीत के टीचर बनिए। क्लास के बाद बच्चों द्वारा फेंकी नोटिंग शीट पढ़कर मैंने प्रैक्टिस शुरू की। इतनी प्रैक्टिस करी कि दो महीने बाद मुझे बेस्ट म्यूज़िशियन का अवॉर्ड मिला।

जुलाई 2003 में मैं global arts gathering के सामने हॉलीवुड, लॉस ऐंजेलेस में गिटार बजा रहा था। वहॉं मुझे 2004 ऐथेंज़’s ओलम्पिक्स में बजाने का निमन्त्रण मिला। मैं वहाँ अपने जीवन की कहानी बताना चाहता था पर उन्होंने सख़्ती से सिर्फ़ संगीत बजाने पर ज़ोर दिया। तब मैंने ईश्वर से प्रार्थना की कि मैं ऐसा गिटार ईजाद करूँ जिसे संसार ने पहले कभी ना देखा हो और अंत:प्रेरणा से मैंने पहला बोंगो-हॉर्प गिटार ‘बेनटार’ बनाया। इसे बनाने में एक वर्ष का समय लगा।”

प्रत्येक बालक में अपनी अनोखी क्षमता होती है। हमें उसे समझने की ज़रूरत है।

अपने मन की आवाज़ सुनने का प्रयास करिए। हरेक बालक को खुद ही ढूंढने का प्रयास करना चाहिए कि उसे किस काम में खुशी मिलती है।

अभिभावक कभी बच्चे का मनोबल तोड़ने का प्रयास न करें।

यह संसार हमेशा ही आपको किसी न किसी प्रतियोगिता के लिए उकसाता रहेगा आप अपनी राह चलें तो भी जिन्दगी आनन्दपूर्ण गुजरेगी।

बेनी आज पूरा संसार घूम चुके हैं। कई देशों के संसद भवनों से लेकर झुग्गी झोंपड़ियों तक ईश्वरीय संगीत पहुँचा चुके हैं। इनकी पत्नी ज़ानबेनी प्रसाद गायिका हैं और नागालैंड से ताल्लुक़ रखती हैं।

आजकल बेनी बैंगलोर में एक कॉन्सल्टेशन रेस्ट्रॉंट chai3:16 चलाते हैं। हीब्रू में चाय का अर्थ लाइफ़ माना जाता है। 3:16 (psalm John3:16) भजन है जिसमें जीवन की शाश्वतता का वर्णन किया गया है। जहाँ हर प्रकार के स्टूडेण्ट्स, युवा, बड़े लोग आते हैं। यहाँ लोगों से उनकी परेशानी सुनी जाती है और उसका समाधान दिया जाता है। संगीत में स्टार्ट अप्स को स्टेज और कॉंसर्ट का मौका दिया जाता है।

वातावरण पूरी तरह सौहार्दपूर्ण रखने का प्रयास किया जाता है। बेनी चाहते हैं युवा आत्महत्या का विचार कभी अपने पर हावी न होने दें।जीवन उद्देश्यपूर्ण और मूल्यों के साथ जिएं।

उनकी कुछ विडियो लिंक नीचे देखिये:

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बचपन से प्रकृति की गोद में पली-बढ़ी श्रद्धा बक्शी कवि और कलाकार पिता की कलाकृतियों और कविताओं में रमी रहीं। साहित्य में प्रेम सहज ही जागृत हो गया। अभिरुचि इतनी बढ़ी कि विद्यालय में पढ़ाने लगीं। छात्रों से आत्मीयता इतनी बढ़ी कि भावी पीढ़ी अपना भविष्य लगने लगी। फ़ौजी पति ने हमेशा उत्साह बढ़ाया और भरपूर सहयोग दिया। लिखने का शौक़ विरासत में मिला जो नए कलेवर में आपके सामने है......

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