अपनी सफलता के मार्ग में हम स्वयं बाधक बनते हैं
मेरे विचार से समस्त विश्व में ऐसा कोई व्यक्ति नहीं होता जो अपने जीवन में सफल नहीं होना चाहता। सब सुखी जीवन की ही कामना करते है। हम ही नहीं हमारे शुभेच्छु अर्थात हमारे माता-पिता, शिक्षक, भाई, बंधु, सखा सभी हमें सुखी रहने का आशीर्वाद व शुभकामनाएँ देते हैं किंतु सुख व समृद्धि का माप दंड क्या है? क्या सबके लिए इसका अर्थ एक समान है?
किसी को दो वक़्त की रोटी व चैन की नींद नसीब हो तो वह स्वयं को ख़ुशनसीब समझता है। वहीं किसी को धन-दौलत, गाड़ी-बंगला सब कुछ मिलने पर भी स्वयं को सुखी नहीं समझता। कारण कुछ भी हो सकता है- अस्वस्थता, संतान हीन होना, व्यापार में हानि आदि-आदि। इससे यह तो स्पष्ट हो गया कि प्रत्येक व्यक्ति के लिए सुख की अवधारणा अलग-अलग होती है। इसी प्रकार सफलता को लेकर भी सबकी विचारधारा भिन्न होती है।
विद्यार्थी द्वारा परीक्षा में अव्वल स्थान प्राप्त करना उसके लिए सफलता की सीधी चढ़ना है।
विदेश में नौकरी प्राप्त करके कोई स्वयं को सफल मानता है।
किसी के द्वारा समाज सेवा में ही सफलता है।
किसी के लिए अपार धन कमाना ही सफलता का आधार है।
यदि संक्षेप में कहा जाए तो अपने जीवन के लिए हम जो भी स्वप्न देखते हैं उसे पूर्ण करना ही सफलता प्राप्त करना है।
मित्रों, मेरे मतानुसार ‘स्वास्थ्य’ जीवन की सफलता की पहली कड़ी है। स्वस्थ रहने वाला व्यक्ति सचमुच सुखी है। बहुत से लोग दूसरे की ऊँचाइयों से दुखी रहता हैं।
‘जो मेरे पास है उसमें क्या ख़ास है,जीवन में अभी विषाद ही विषाद है।
सुख तो तब मिलेगा मुझे जब वो मिले जो दूसरों के पास है।’
हमें ऐसी संकुचित मानसिकता को त्यागकर जो हमारे पास है उसके लिए ईश्वर को धन्यवाद करना चाहिए तथा जो नहीं है उसके बारे में हताश होकर बैठने अथवा दूसरों से ईर्ष्या न करके, उसे प्राप्त करने के लिए प्रयासरत रहना चाहिए। जीवन में निर्धारित किसी भी लक्ष्य को प्राप्त करने के लिए हमारा शारीरिक व मानसिक रूप से स्वस्थ रहना अति आवश्यक है।
नि:संदेह कुछ लोग ग़लत मार्ग पर चलकर भी सफलता पा लेते हैं किंतु ऐसी सफलता क्षणिक सुख ही दे सकती है। अतः यह निर्णय भी हमें ही लेना है कि हमें किस मार्ग पर चलना है। व्यक्ति अपनी सफलता का श्रेय स्वयं को देता है जिसमें पता नहीं कितने लोगों का योगदान होता है। बड़ों का आशीर्वाद, किसी से प्राप्त प्रेरणा, किसी के द्वारा दिया गया दिशा-निर्देश आदि किंतु अपनी असफलता के लिए मनुष्य दूसरों को दोष देना नहीं भूलता। कभी भाग्य को कोसता है, कभी माता-पिता को तो कभी मित्रों को किंतु अपनी असफलता के कारणों को समझकर जो व्यक्ति स्वयं को ज़िम्मेदार मानकर अनवरत प्रयास करता है उसे सफल होने से कोई नहीं रोक सकता।
‘अपनी ग़लतियों से सीख लेकर जो जीवन में बढ़ता है,
जिसे झिझक नहीं अपनी भूल स्वीकारने में,
जिसके लिए हर हार सुधरने का एक मौक़ा है,
निहसंदेह जीवन में सफल वही होता है।’
अंत में यही कहना उचित होगा कि अपनी सफलता के मार्ग में हमें बाधक नहीं बनना चाहिए। अपनी सामर्थ्य को पहचान कर निर्धारित लक्ष्य को प्राप्त करने के लिए सदैव अग्रसर होना चाहिए। ईश्वर में आस्था रखते हुए, अपने विवेक से उचित-अनुचित के भेद को समझकर आगे बढ़ना ही सफलता के मार्ग पर चलना है। याद रखें संघर्ष जीवन का अहम हिस्सा है और संघर्षहीन जीवन तो पशु-पक्षियों का भी नहीं है, उन्हें भी अपने भोजन-पानी के लिए संघर्ष करना पड़ता है फिर मनुष्य को तो उसके विवेक के आधार पर सर्वश्रेष्ठ प्राणी की उपाधि प्राप्त है, तो क्या बिना संघर्ष के मनुष्य के व्यक्तित्व का विकास सम्भव है? जी नहीं, अतः सत्य को स्वीकारें, उसे जीवन में उतारें व सफलता के स्वाद का आनंद लें।
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श्रीमती सीमा रानी मिश्रा-जेडीएसयू ,हिसार