प्यार से…
बचपन से ही हमें बड़े-बड़े लक्ष्य भेदने की प्रेरणा दी जाती है और यह नहीं समझाया जाता कि ज़िंदगी तो छोटी-छोटी उपलब्धियों से बनती है। छोटे-छोटे लक्ष्य,छोटी-छोटी उपलब्धियाँ बच्चे को जीवनपथ का अारोही बना देती हैं।
> आपके पास बैंक अकाउंट में करोड़ों रुपए ना भी हों पर यदि इस ब्लॉग को पढ़ पा रहे हैं तो आप धनी और सौभाग्यशाली लोगों में से एक हैं। कैसे?
> आप के पास शिक्षा है, सक्षम शरीर है, समझदारी है, सम्वेदना है। इस अमूल्य सम्पदा से आप कितना कुछ कर सकते हैं। किसी का एकाकीपन दूर करिए, किसी मायूस बच्चे को प्यार दीजिए, किसी मरीज़ का हाथ पकड़ कर सहानुभूति जताइए, किसी शोक संतप्त व्यक्ति को गले लगा लीजिए, सबके साथ अपनी प्रेम भरी ईश्वरीय सम्पत्ति बाँटिए। जितना बाँटेंगे उतनी ही बढ़ेगी।
I love you, तीन साधारण से शब्द किसी की भी हिम्मत बढ़ा सकते हैं या मुस्कुराहट ला सकते हैं। ज़रूरत के समय बहुत से लोग इसी बात का इंतज़ार करते रह जाते हैं कि कोई उनसे उनका हाल तो पूछ ले। किसी की खैरियत पूछ लेने से हमेशा प्रभाव गहराई तक जाता है। यह एक से दूसरे और दूसरे से तीसरे तक शृंखला बन सकता है। This chain reaction could have a butterfly effect and your one good deed could impact millions. It doesn’t matter how much you give, what matters is how many people you touched.You can give a lot … Some incidents that made my life.
कभी ऐसा नहीं लगा कि हमने कुछ किया … हमेशा लगा लाइफ़ उस ईश्वर की निगाहों में फिसलती चली गयी…
कभी साधन हम बने, कभी अनुभवों का उपहार हमें दे गयी।
दरअसल कोई कुछ करता नहीं, पर समय पर दैव संयोग से सहारा ज़रूर बन जाता है।
कार के म्यूज़िक सिस्टम में ‘ना जाने क्यूँ, होता है यूँ ज़िंदगी में कई बार…..’ गाना बज रहा था। गरमियों की चिलचिलाती धूप में चौंधियाती आँखों से ज्यों ही गोल चक्कर ले अपनी सड़क पकड़ी। हमारे ठीक सामने एक माँ अपने बच्चे को गोदी में उठाए सड़क पार करते-करते घबरा कर रुक गयी। बच्चा काफ़ी बड़ा लग रहा था – लगा बीमार है। ब्रेक लगाया और साइड में गाड़ी खड़ी कर मैं उसके पास गयी, पता चला बच्चा बहुत तेज़ बुखार में है और माँ ऑटो ना मिलने के कारण सड़क पर गोदी में ही ले आयी ताकि कोई सवारी गाड़ी मिले और अस्पताल जाया जा सके। हमने बहुत आग्रह करके उन्हें कार में बैठाया और अस्पताल ले गए। बच्चे को एड्मिट करवा कर और दवाइयाँ देकर जब चले उस माँ की आँखों में नमी थी, गला खंखार कर बोली कम से कम अपना नाम तो बता जाते … अापका नाम ही हमारा नाम है आप भी मॉं हैं मैं भी….कहकर हमने विदा ली।
भीषण गरमी पड़ रही थी। मामा की बगिया में फूल ही फूल खिले थे। उनपर सुबह-शाम तितलियाँ मँडराती दिख जाती थीं।एक दिन अचानक पैर के सामने एक तितली बेहोश-सी पड़ी दिखायी दी ,लगा कि मर गयी पर जब उठाया तो हाथ में उसका एक बाल हिला। बस तुरंत चार बूंद पानी में दस दाने शक्कर घोली और उसे पिलाने की कोशिश की। पत्ते पर पानी की बूँदें डालीं और उसपर अधलेटी तितली धीरे-धीरे पंख फैलाकर फूलों की ओर उड़ती ऐसी लगी जैसे ज़िन्दगी साक्षात प्रकृति के सौंदर्य की तरफ़ उड़ चली हो…. पराग के कणों को समेटने के लिए। कुछ भी नहीं किया पर असीम आनंद का आभास हुआ…
कुछ दैवीय संयोग से इंडिया गेट पर एक अहाते में बहुत विशाल कमरों वाला घर मिला। हम धन्य हुए। अनिकेत को पता मिला …११०००१ पिन कोड। सोचकर ही फूले ना समाते, हर पल शुक्रिया के भाव में भाव-विभोर। इसी दौर में हर दूसरे दिन मज़दूरों के बच्चों को खाना खिला आते। कुछ दिन बाद बच्चे इतना पहचान गए कि दूर से देखते ही भाग कर चले आते और लाइन बना लेते। उन दिनों वहाँ बहुत काम चल रहा था। जगह-जगह उनकी झुग्गियाँ बनी हुई थीं। एक दिन कुछ कॉपीज़, पेन्सिल और हवाई चप्पल लेकर सड़क पर बच्चों को ढूँढने निकली। थोड़ी देर बाद बच्चों का झुंड इकट्ठा हो गया। उनकी पहली अक्षर ज्ञान की कक्षा लगी और अब बारी थी चप्पल बाँटने की। सभी बच्चों ने चप्पलें पहनीं और मैदान में उछल कूद करने लगे। तभी एक शर्माती सकुचाई बड़ी सी लड़की आकर बोली,”मैडमजी आप मेरे साइज़ की तो लायी नहीं। मैं क्या पहनूँ ?””तुम बड़ी दीदी हो, तुम्हारे लिए सोचकर मैं बाज़ार नहीं गयी थी।” मैं पशोपेश में पड़ गयी। उसके चेहरे की मायूसी, आँखों का सूनापन अन्दर तक गहरा गया। मैंने दिलासा दिया,” अगली बार मार्केट जाऊँगी तुम्हारे लिए भी लाऊँगी।” वो बोली,”पर मैं तो कल की गाड़ी से गाँव चली जाऊँगी।””तो बेटे, तुम्हारे पापा नंगे पॉंव तुम्हें इतना लम्बा सफ़र करवाएँगे?””मैं भाभी के साथ आई हूँ। उनके बच्चों को देखने। पापा नहीं हैं। गॉंव में माँ रहती हैं। दादी इतना मारती हैं कि माँ का दिमाग कमज़ोर पड़ गया है। भाई ने कहा था कि शहर चलो, तुम्हें नए कपड़े, चप्पल दिलवाऊँगा पर रोज़ चप्पल मारता है, देता नहीं।” मैं अंदर तक सिहर उठी। ये हमारा समाज है? घर-घर में स्त्रियों-बच्चियों पर क़हर ढाया जाता है और सुनवायी कहीं नहीं। ख़ैर, मैंने उससे कहा,” देख,मुझे मेरे गेट तक पहुँचने दे वहाँ से ये मेरी चप्पल ले लेना।” गेट पर जब उसे चप्पल उतार कर दीं तो उसने मुझे अपनी बाहों में भर लिया। पैर छुए और चप्पल को ऐसे सम्हालकर ले जाने लगी जैसे कोई अनमोल वस्तु हाथ लग गयी हो। मैंने पीछे से आवाज़ दी,”बेटे, पहन के तो जाओ।” उसने तिरछी चितवन से जो पलटकर देखा और उन्हें पहन पहले डगमगाई फिर सुस्थिर होकर जो चली उसपर कितनी ही मिस यूनिवर्स या मिस वर्ल्ड क़ुर्बान थीं। और मुझे ख़ुशी मिली इतनी कि मन में ना समाय………
हमारी विवाह की पच्चीसवी वर्षगाँठ थी। उसके समारोह की तैयारी के लिए हम हरिद्वार के अपने आश्रम में गए। जब दिल्ली के लिए वापसी का समय आया तो अचानक एक अाश्रमवासी एक घायल तोते को लेकर आए कि देखिए इसे किसी बड़े पक्षी ने घायल कर दिया है, थोड़ा डिटॉल लगा दीजिए और कुछ खाने को दे दीजिए। वह बिलकुल मूर्च्छित-सा लग रहा था। दिल्ली में हमारे पड़ोसी तोता पालते थे। हमने उनसे पूछा, उन्होंने कहा,”आप यहाँ आ रहे हैं तो उसे कार्टन में ले आइए। हमारे पास सब दवाइयाँ हैं, देख लेंगे। पहाड़ी होगा तो हम रख लेंगे।” हमारी यात्रा में अब एक और साथी था तोता। हम उसे पानी पिलाते दिल्ली ले आए। पड़ोसियों ने उसका प्राथमिक उपचार किया पर लेने से इंकार कर दिया कि यह पहाड़ी तोता नहीं है। हमारे पास पहले ही एक है दो सम्हालने मुश्किल हो जाएँगे। अब मिट्ठुजी हमारे पल्ले थे। पतिदेव चिड़ियों को पिंजरे में रखने के सख़्त ख़िलाफ़, उड़ाने की बात कहते। मिट्ठुजी इस हालत में नहीं थे कि ख़ुद की रक्षा कर सकते। तभी इनके मन में एक अद्भुत विचार कौंधा। राष्ट्रपति भवन के पशु चिकित्सा विभाग में ऐसी बहुत सी चिड़ियों की देखभाल होती थी और हॉस्टल भी था। जब चिड़िया ठीक हो जाती थी तो वहीं की बगिया और जंगल में उड़ा दिया जाता। हरिद्वार के आश्रम से चला मिट्ठु अब राष्ट्रपतिजी की आवभगत में स्वतंत्र घूम रहा है। कहिए, क्या कहेंगे ..?