परिचय इस सफ़र का
“आपके जीवन का सार क्या है? इससे आपने क्या ग्रहण किया? बीबी बताइए ना! अपने जीवन से मिली शिक्षा।” सौ वर्षीया बीबी मुस्कुराते हुए सोचने लगीं। हाथ में हिंदी का अख़बार और बेंत की कुर्सी पर सन जैसे सफ़ेद बालों वाली बीबी सहज ही बोलीं, “जिज्ञासा, जिज्ञासु रहो। बहुत सीखोगे।”
सन १९१४ में जन्म लेने वाली बीबी ने जीवन भर देख-सुनकर ही सीखा। उनकी अदम्य जिज्ञासा ने विद्यालय का मुँह ना देखने पर भी ‘जीवन की नैया कुशल खिवैया’ की तरह आगे बढ़ायी। सन्तरी से लेकर मंत्री तक उनके आशीर्वाद को लालायित रहते थे।
दीपक ने उन्हें परम सम्माननीया माना और… “यशस्वी,दीर्घायु,बलवान बनो,सफलता तुम्हारे क़दम चूमे …रोम-रोम से आशीर्वाद है,” उनका आशीष पाया।
हमारे आस-पास निगाह घुमाइये आपको बहुत से दैदीप्यमान नक्षत्र घूमते नज़र आएँगे जैसे आकाशगंगा में तैरते असंख्य सौर पिंड। ये अद्भुत ऊर्जा से भरे हैं। अपने भीतर छिपी सकारात्मकता लिए ना जाने कितने लोगों को प्रभावित कर रहे हैं। इनकी पॉज़िटिव बातों से अनायास ही मन में छिपी विषमताएँ साफ़ होने लगती हैं। ऐसे लोगों से मिलने के बाद लगता है,’पहले क्यूँ नहीं मिले?’
ऐसी प्रतिभा के धनी हैं दीपक रमोला। पर्वतीय प्रदेश उत्तराखंड में पले-बढ़े आकर्षक दीपक अपनी उम्र,आकृति और चेहरे-मोहरे से भ्रांति पैदा करते हैं। Dynamite in small package!
आश्चर्य होता है ये बालक! लेकिन जब भाषण शुरू करते हैं तो बवंडर के पर्याय कॉलेज के छात्रों में सन्नाटे की लहर आती मैंने अनुभव की है।
फ़ौजी की पत्नी से अध्यापिका और अध्यापिका से फ़ौजी पत्नी बनते जीवन में मैंने कई रोल अदा किए।
अनुशासन और कर्तव्य से भरे वातावरण में स्कूल और छात्रों का साथ, मन में सुगन्धित बयार भर जाता। छात्रों की मासूमियत से भरी जिज्ञासा को शांत करना,पढ़ने के ना जाने कितने तरीक़े ईजाद करवा देता और बच्चे बाख़ूबी सभी गतिविधियों में अपनी अकल इस्तेमाल करते कुछ नया कर दिखाते। वो मुझे नए आयाम देते थे ….नया दृष्टिकोण…..।
सुबह की धूप से खिले बच्चे, विद्यालय प्रांगण, पुस्तकें, लेक्चर, कार्यक्रमों की तैयारी, कभी शाबाशी तो कभी फटकार। उत्सव सा माहौल था। उसी बीच नन्हासा बालक अपनी कविता लेकर आया। भाव, शब्दों का चयन, कुछ ही पंक्तियों में बड़ी बात….. “बेटे,मुझे तुम्हारी स्वरचित कविता चाहिए। इधर-उधर से टीपी नहीं।”
“मैम,मैंने अभी ख़ुद ही लिखी है।” मायूसी उसके चेहरे पर गहराती दिखी। मैंने प्रश्नवाचक निगाह साथियों पर डाली सबने सिर हिलाया,”मैम, ये तो सब कुछ ख़ुद ही लिखता है। मैंने दुबारा पढ़ी, तिबारा पढ़ी। प्रतिभा मुखरित थी। सहयोगियों से चर्चा में पता चला कि अंग्रेज़ी में भी जनाब अच्छी पकड़ रखते हैं।
अतीव लगन, मेहनत, साफ़ वक़्ता दीपक वाद -विवाद, कविता पाठ में अपनी पहचान बनाने लगा। जहाँ गया वहीं जीत। अब जब वो मेरी कक्षा में आने वाला था, मैं विद्यालय छोड़ फ़ौजी जीवन में खींच ली गयी। एक कसक लिए मैंने शहर ही छोड़ दिया।
एक दिन अचानक फ़ोन बजा मैं मुंबई में गरमी से त्रस्त महानगर की ज़िंदगी को समझ रही थी। दूसरी तरफ़ दीपक था, “मैम, १२ वी हो गयी है अब?” यकायक मुँह से निकला,” मुंबई आ जाओ अभी तुरन्त, फ़ॉर्म भरे जा रहे हैं। तुम्हारा भविष्य यहीं है।
तीसरे दिन दीपक पिताजी के साथ मुंबई में था। दाख़िला मिल गया। ‘होनहार बिरवान के होत चीकने पात’बाक़ी सब पास्ट है ।
महानगरी की चकाचौंध में दीपक बहा नहीं। उन्ही परिस्थितियों से प्रेरणा लेकर कविता, कहानी, गीत, फ़िल्मी स्क्रिप्ट लिखने लगा। कभी सोनल मानसिंह के कार्यक्रम संचालित किए। कभी गीतों के ज़रिए गुलज़ार साहेब से आशीष लिया। कभी नाटक लिखे, कभी फ़िल्मों तक दौड़ लगायी। हमेशा की तरह फ़ोन बजा, “मैम, मुझे यूनिवर्सिटी से गोल्ड मेडल मिल रहा है।” आँखों से अविरल आँसू और ख़ुदा के प्रति हर बार शुक्रिया जारी रहा।
बालक से युवा होता आकर्षक व्यक्तित्व उसकी दृढ़ता और प्रगति का परिणाम था। ओजस्वी वाणी और प्रभावशाली शैली, जब मुझे पता चला कि कई अन्य करामाती कामों के साथ दीपक बहुत शिद्दत से लोगों के जीवन का सार एकत्रित कर रहा है। मुझे लगा दीवाली के अनार से निकलने वाले स्फुलिंग यत्र-तत्र-सर्वत्र बिखरने वाले हैं। आनंद का दौर अब शुरू हुआ।
दीपक ने अनोखी परियोजना शुरू की ‘प्रोजेक्ट फ्युएल’- “Forward the Understanding of Every Life Lesson”
हमें अपने जीवन से मिली महत्वपूर्ण शिक्षा भेजिए। आपकी सीख किसी दूसरे के जीवन में उजाला भर सकती है। किसी के हृदय में नई ऊर्जा का संचार कर सकती है।
दीपक ने विद्यार्थियों को पहले लक्ष्य बनाया। हमारी नई शिक्षा प्रणाली में चरित्र, व्यवहार, सामाजिक सहनशीलता, सह अस्तित्व, वसुधैव कुटुम्बकम, जियो और जीनेदो-सिर्फ़ नारे बाज़ी का अंग बनकर रह गए हैं। उसे व्यवहार में अपने व्यक्तित्व का अंग कैसे बनाया जाए, यह सिखाने की मंशा लिए दीपक सेमिनार करने लगा।
राष्ट्रपति भवन में पिछवाड़े दालान में नाचते मोरों के बीच साथ घूमते-घूमते कभी वो नए लिखे गीत गाता, कभी फ्युएल से मिलती पहचान और लोगों के साथ डाइरेक्ट कनेक्ट की बात करता। मैं समझ रही थी, यह अब सहस्त्रबाहु ही नहीं सहस्रकोण बिखेरने जा रहा है। हर कोण से सम्बद्ध नए ग्रुप, नए लोग….इस संसार में सहस्र कोटि मानव, उतने ही जीवन सार उतने ही जीवन पाठ।
प्रोजेक्ट फ्युएल का काम ही यही है उसमें भाग लेने वाले एक-एक सदस्य के मन की ग्रंथियों को सुलझाना, उन्हें सही दिशा की ओर मोड़ना। किसी एक के जीवनसार को लेकर उस पर विभिन्न गतिविधियों द्वारा लोगों का ध्यान आकर्षित करना और उन्हें स्वयं ही प्रेरणा हासिल करवाना।
दीपक की मंशा थी कि प्रोजेक्ट फ्युएल का एक आयाम Blog हिंदी में भी हो। इस माह से हिंदी सम्पादक के रूप में मैं नया रोल ले रही हूँ जिसमें आने वाली सामग्री को सहेजने, सुधारने और आपके समक्ष पेश करने की ज़िम्मेवारी मेरी होगी।
हमारी बहुत इंटेरेक्टिव वेबसाइट है जहाँ आप अपने मन में चलने वाले हर नए विचार को लिख सकते हैं। आपने स्वयं ज़िंदगी से क्या सीखा? अपने किसी मित्र, सहायक, सम्बंधी से पूछकर उनकी जीवन शिक्षा लिख सकते हैं। हम उस पर तुरंत कार्य करेंगे। आपके मन में उमंग हो या ग़ुबार सभी का स्वागत है। आप कुछ लिखना चाहते हैं, लिख डालिये और नीचे बने बॉक्स में हिंदी, रोमन हिंदी या इंग्लिश या अपनी भाषा में टाइप कर डालिये। हम तुरंत हाज़िर होंगे। आपके जीवन सार हमारे लिए अनमोल हैं।
हम आपकी प्रतीक्षा में हैं…..
आइए, प्रोजेक्ट फ्युएल के साथ जुड़ें।