क्या निराश हो कर बैठना उचित है ?
बचपन में गर्मियों की छुट्टियां आना और नई – नई कहानियॉं सुनना इन सब का अपना ही मज़ा था। मैं हर साल गर्मियों की छुट्टियों में अपनी बुआ के घर बड़ोदा जाती थी। पापा अक्सर मुझे छुट्टियों के समय बुआ के पास छोड़ आया करते थे। मैं और मेरी बुआ की बेटी (निक्की) हम-उम्र थे और अच्छे दोस्त भी। मैं जब से आठ वर्ष की हुई थी तबसे बुआ के घर ही छुट्टियां मनाने आती थी। मैं और निक्की शहर के पार्क में रोज़ खेलने जाते थे। पार्क के पास वाले घर में एक बूढ़ी दादी अपने बेटे-बहु के साथ रहती थीं। बेटे-बहु तो काम पर चले जाते थे और रमा दादी पूरे दिन अकेली रहती थीं। इसीलिए वे पार्क में खेलने वाले बच्चों को कहानी सुनाती थीं और फिर टॉफ़ी भी देती थीं। मैं करीब पॉंच बार छुट्टियों में बुआ के घर गई और रमा दादी से हर बार नई कहानियां भी सुनी। हम बच्चे कहानी सुनने के साथ – साथ टॉफ़ी लेने के चक्कर में उनके पास जाते थे। हमें बड़ा मज़ा आता था। उससे मिली शिक्षा उस समय कहॉं इतनी समझ आती थी। पर आज मैं 23 वर्ष की हो चुकी हूँ। एक किराये के कमरे में रहती हूँ और एक ठीक-ठाक सी नौकरी कर रही हूँ। हालॉंकि, मैं इस ज़िन्दगी से उतनी खुश नहीं हूँ। कहाँ बचपन में जिन आँखों ने बड़े-बड़े सपने संजोये थे आज वो एक छोटी नौकरी में सिमट गए हैं। मैं हर रोज़ सुबह उठकर अपना चाय का कप लेकर बालकनी में खड़ी हो जाती थी। रोज़ सोचती थी कि बचपन में कैसे सुबह उठते ही चेहरे पर कितना उत्साहपूर्ण होता था और आज माथे पर चिंता की लकीरों के अलावा कुछ नज़र नहीं आता।
बढ़ती उम्र के साथ जीवन जैसे कठिनाईयों और चिंताओं से भर जाता है। आज के समय में तो 15 साल के बच्चे को ही ना जाने कितनी चिंताएँ होती हैं। दसवीं में इतने नंबर लाने ही हैं, बारहवीं में कौन सा विषय लूँ ? आई ए एस बनूँ या फिर मेडिकल में चला जाऊँ। ये सब सोचते हुए अचानक से मेरी नज़र घर के पास बैठी एक फूलवाली पर गई। उसकी नातिन उससे कहानी सुन रही थी और उस कहानी ने मुझे रमा दादी की कहानियों की याद दिला दी। बचपन में सुनी वो कहानियां आज ऑफिस जाते समय मेरे दिमाग में चल रही थीं। ख्याल आया कि क्या इन कहानियों में कुछ ऐसा था जो काम का हो।
मैं आपको भी एक कहानी बताती हूँ।
“एक बार सुनसान रास्ते पर एक आदमी ने हाथी बंधा देखा। हाथी एक खूंटी से छोटी सी रस्सी से बंधा था, जिसे वो आसानी से तोड़कर भाग सकता था। आदमी ने सोचा इसके मालिक से पूछता हूँ। आदमी ने मालिक से कहा तुमने इतनी छोटी रस्सी से इतने बड़े हाथी को बाँध रखा है, अगर भाग गया तो ? मालिक बोला, मैंने इस हाथी को छोटे से ही इतनी ही लम्बी रस्सी से बाँधा है। उस समय ये इसे बहुत कोशिशों के बाद भी नहीं खोल पाता था और फिर इसने कोशिश करना ही बंद कर दिया। आदमी को समझ आया कि हाथी में सामर्थ्य थी पर उसके अंदर अब प्रयास करने की इच्छा ही नहीं थी क्यूंकि वो अपनी हार स्वीकार कर चुका था और स्थिति से बंध चुका था।” इस कहानी की सीख मुझे आज समझ में आई, “दुनिया आपको कितना ही क्यों न रोके, इस विश्वास पर कायम रहिए कि आप जो चाहें वो हासिल कर सकते हैं।”
एक और कहानी थी-
“एक छोटे गांव में रहने वाली रानी का पिता एक व्यापारी के कर्ज़ में डूबा था। कर्ज़ चुकाना उसके लिए बहुत मुश्किल था। चालाक व्यापारी बोला कि मेरी शादी अपनी बेटी से करा दो मैं कर्ज़ा माफ़ कर दूंगा । अब रानी के पिता को लगा यह बात सही है, मैं कर्ज़े से भी आज़ाद हो जाऊँगा और रानी की शादी भी हो जाएगी। लेकिन उसने कहा कि रानी को ये न लगे कि मैं कर्जे के कारण दबाव डाल रहा हूँ इसलिए एक युक्ति निकालता हूँ । एक झोले में दो पत्थर डालूंगा- एक काला और दूसरा सफ़ेद। अगर काला पत्थर उठाया तो रानी की शादी भी होगी और कर्ज़ भी माफ़ हो जाएगा यदि सफ़ेद उठाया तो शादी नहीं होगी पर क़र्ज़ तो चुकेगा ही। दूसरे दिन जब झोले में पिता ने दोनों काले पत्थर डाले तो रानी ने देख लिया। अब रानी के पास तीन विकल्प थे।
1) वो पत्थर उठाने से मना कर दे।
2) दोनों पत्थर उठाकर अपने पिता का सच सामने ले आए।
3) पत्थर उठाए और खुद कुर्बान होकर पिता को आज़ाद कर दे।
लेकिन रानी ने समझदारी दिखाई और पत्थर उठाते समय नीचे गिरा दिया। नीचे काफी सारे पत्थर थे , अब पता लगाना मुश्किल था। रानी व्यापारी से बोली अब खुद ही देख लो झोले में जो पत्थर होगा मैंने उसका उल्टा उठाया होगा । झोले में काला पत्थर होने से रानी खुद भी बच गई और उसका पिता भी। “इस कहानी से ये समझ आया कि ज़रूरी नहीं कि हम कठिन परिस्थिति में सामने रखे विकल्पों को ही चुनें। हम अपनी सोच से नया रास्ता निकाल सकते हैं उस परिस्थिति से बाहर आ सकते हैं।
ये कहानियां याद कर के समझ आया कि इनकी शिक्षाएं हमें आज का कठिन जीवन जीने में कितना हौसला दे सकती हैं। हम अपनी आँखों से बड़े सपने तो देख लेते हैं। लेकिन जब उन्हें साकार करने के रास्ते में अड़चन आती है तो हम हिम्मत हारने लगते हैं। कुछ प्रयासों के बाद समझौते कर लेते हैं। ऐसा करना बिलकुल भी सही नहीं है। सफलता इस तरीके से कभी हासिल नहीं हो सकती। निरंतर प्रयास व सद्बुद्धि प्रत्येक हार एवं निराशा को सफलता में बदल सकती है। यदि वो हाथी प्रयास करना न छोड़ता तो आज़ाद हो जाता। रानी अगर परिस्थिति से समझौता कर लेती तो ना चाहते हुए भी फंस जाती।
इसी तरह हम भी कोई न कोई रास्ता निकाल सकते हैं। हिम्मत छोड़ देना या फिर निराश होकर प्रयास करना छोड़ देना बिलकुल भी उचित नहीं है। क्या पता अगली सीढ़ी आपकी सफलता की सीढ़ी हो।