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सन १९६४, ऋषिकेश से बस चली जोशीमठ के लिए, वहाँ से डिमर गाँव पास पड़ता था। एक १३-१४ वर्षीय बालक चढ़ा क्यूँकि स्कूल में अचानक चार दिन की छुट्टी हो गयी थी। घर से कोई लेने आने का सवाल ही नहीं था। उसे गॉंव पहुँचने का रास्ता मालूम था। रास्ते में १२-१ बजे के बीच बस ड्राइवर ने एक ढाबे पर चाय-पानी और खाने के लिए बस रोक दी। बालक के पास ५ रुपए थे, उसने दाल-चावल खाए और बस चलने का इंतज़ार करने लगा। छाया के लिए एक पेड़ के पीछे चारपाई पड़ी थी, उसी पर बैठ गया। धीरे-धीरे उसे नींद आने लगी। सभी यात्री आस-पास खाना खा रहे थे। ढाबे के पहाड़ी भुले (waiters) घूम रहे थे। तभी उनिंदी अवस्था में उसने अंतर्मन से सुना-इसे यहीं सोने दो, अभी इसे रहना है। इसके बाद वह गहरी तन्द्रा में डूब गया। तक़रीबन ३-३:३० बजे शोर मचा तब उसकी नींद खुली, ख़ुद को वहीं पाकर घोर आश्चर्य में पड़ गया कि मेरी बस कैसे छूट गयी? अगली बस अगले दिन दोपहर में ही मिलेगी। परेशान होकर दुकान की तरफ़ भागा। दुकानदार देखते ही चिल्लाया, ये निर्भाग्या, तेरा कौन-कौन था उस बस में? क्यूँ, क्या हुआ? उसी से पता चला बस निकले तो दो घंटे बीत चुके थे। आगे किसी मोड़ पर ब्रेक फ़ेल हो गए और बस दो सौ फ़ीट गहरे गड्ढे में गिर गयी। गाँववाले जीपों में भर-भर कर वहीं जा रहे थे।

उसके मन में तभी वो वाक्य कौंध गया- कौन था जिसने कहा- इसे यहीं सोने दो,अभी इसे रहना है। किसने निर्णय लिया कि अभी बालक की ज़िंदगी आगे भी है? आज यही बालक पिछले चालीस वर्षों से मेक्सिको में योगाचार्य के पद पर न जाने कितने लोगों को आध्यात्मिक विचार और ध्यान योग सिखा चुका है।

सहज बोध वो विचार है जिस पर अनजाने ही आपकी आत्मा प्रतिक्रिया करती है, उसकी अंदरूनी छुअन आपको प्रभावित करती है।

अपने सहज बोध( intuitions) और विचारों पर निगाह रखें:

कभी अापने सोचा है कि क्यूँ कुछ लोग out of box सोच लेते हैं और काम नए तरीक़े से चल पड़ता है। ये बॉक्स का स्तर क्या है? जो सुना-सुनाया आज़माया रास्ता है सभी उसी राह पर चलने को तैयार हो जाते हैं पर जब कुछ नया अनोखा रास्ता दीखता है उसे ही by intuition कहा जाता है। इसे सहज बोध भी कहते हैं। जो अचानक बिजली की तरह दीखता है। विचारों के गहरे धुँधलके में चमकता एक सितारा जो दिखा, कौंधा और लुप्त हो गया। सहज बोध पूर्वाभास का परिणाम माना जा सकता है पर आम विचार नहीं। Intuition आपकी आध्यात्मिक लहरों की ऊँचाइयों से उठता है। आपको भविष्य के प्रति आगाह करता है। इसके ऊपर तर्क, कुतर्क या कारण बताओ की भावना से बचें। सहज स्वीकारें, जब आपको सही कारण मालूम पड़ेगा तब भावनाएँ सहज ही स्फुटित हो जाएँगी।

इसी सहज बोध की किरण की पकड़ आपको जागृत करनी है। अनेकों बार आपकी उन्नति और बेहतर प्रदर्शन के लिए आपके मन में ही ऐसे दिशा निर्देश जागृत होते हैं जो जल्द ही ग़ायब भी हो जाते हैं। वही आपके आध्यात्मिक (metaphysical) क्षेत्र से आते हैं। आपको उन्हें पकड़ना है और विचारों से अलग रखना है। धीरे-धीरे स्थिति स्पष्ट होने लगेगी, यही सहज किरण आपको दूसरों से अलग करेगी।

मस्तिष्क में विचार आते-जाते हैं, उनकी उत्पत्ति पर कोई नियंत्रण हो नहीं सकता। असल में ये वहीं से आते हैं जहाँ आप बार-बार सोचना चाहते हैं। एक तरह की प्रोग्रामिंग शुरू हो जाती है। आप अपनी भावनाएँ उनमें प्रतिरोपित करते हैं और विचार बढ़ने लगते हैं। किसी एक विषय पर मस्तिष्क tuned हो जाता है, जबतक आप स्वयं उस विचार शृंखला को ना तोड़ें।
इसलिए किसी भी समस्या को लेकर ज़्यादा विचार करना समाधान नहीं देता, चिंता देता है।

Leadership enhance करने के लिए आपको सप्रयास अपनी इस क़ाबलियत पर भरोसा बढ़ाना चाहिए। आधे intuitions हम यूँ ही छोड़ देते हैं, अपने पर विश्वास की कमी होने के कारण। हम पहचान ही नहीं पाते कि इतने विचारों के बीच सही guidance कौन सी थी क्यूँकि हम अपने आप से संवाद करने से कतराते हैं। स्वामी विवेकानंद ने तो यहाँ तक कह दिया
“Talk to yourself at least once a day, otherwise you may miss a meeting with an excellent person in the world”

स्वामी विवेकानंद हों या मास्टर या सदगुरु कह-कह कर थक चुके आत्म मंथन करिए, ध्यान करिए। अपने असंख्य लगातार बेलगाम विचारों को अपने ऊपर हावी मत होने दीजिए। अनुशासित करिए। मस्तिष्क को विचारहीन करने की कोशिश करिए। किसी ने भृकुटि के मध्य या हृदय में रोशनी देखने का ज्ञान दिया। किसी ने सामने दीवार पर उगता सूर्य बनाया किसीने लाल बत्ती लगाई। हर प्रकार ज्ञानियों ने भरसक कोशिश करली कि आप दिन के २४ घंटों में से कुछ मिनट अपनी आत्मा की पुकार सुनने के लिए बस चुपचाप बैठ जाएँ, ध्यान करें। यहीं से ‘इंटूयटिव नॉवल विचारों’ की खान मिलेगी। इसके लिए समय निकालना पड़ेगा।

प्रचलित शिक्षा में ज़ीरो, नाकाबिल, कक्षा में फिसड्डी आइन्स्टायन, एडिसन या सचिन तेन्दुलकर आज कहाँ पहुँच गए….ज़रूरी नहीं ज़िंदगी में स्कूल के टॉपर ही ऊँचाइयाँ छू सकते हैं, वो भी बहुत आगे बढ़ सकते हैं जिन्होंने समय की नब्ज़ को पहचाना। यही नब्ज़ अापका heightened intuition है। विचार और सहज बोध में बहुत अंतर है। विचार हमेशा आपको घेरे रहते हैं और परिस्थिति, बाहरी प्रभाव और प्रतिक्रिया देखकर आपको ऐक्शन के लिए प्रेरित करते हैं पर intuition अचानक से कौंधी bright wave है जिसे आपको ध्यान केंद्रित कर पकड़ना है और रेडिओ की wavelength की तरह सुई अटका, स्थिर होकर सन्देश प्राप्त करना है।

कहिए हैं आप तैयार……….?

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बचपन से प्रकृति की गोद में पली-बढ़ी श्रद्धा बक्शी कवि और कलाकार पिता की कलाकृतियों और कविताओं में रमी रहीं। साहित्य में प्रेम सहज ही जागृत हो गया। अभिरुचि इतनी बढ़ी कि विद्यालय में पढ़ाने लगीं। छात्रों से आत्मीयता इतनी बढ़ी कि भावी पीढ़ी अपना भविष्य लगने लगी। फ़ौजी पति ने हमेशा उत्साह बढ़ाया और भरपूर सहयोग दिया। लिखने का शौक़ विरासत में मिला जो नए कलेवर में आपके सामने है......

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