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"लो अतीत से उतना ही जितना पोषक है जीर्ण-शीर्ण का मोह मृत्यु का ही द्योतक है तोड़ो बन्धन, रुके न चिन्तन गति, जीवन का सत्य चिरन्तन धारा के शाश्वत प्रवाह में इतने गतिमय बनो कि जितना परिवर्तन है।" साभार श्री द्वारिका प्रसाद माहेश्वरी भारत की राष्ट्रीय भाषा हिंदी बहुत प्रयासों के बाद अपने शुद्ध रूप में आयी। आचार्य राम चंद्र…

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