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जब से विद्यालय में मैंने पढ़ाना शुरू किया तब से ही रंगमंच मेरे साथ जैसे जुड़ गया था। बच्चों के साथ जब उन्हें कुछ सिखाने का प्रयास करती तो स्वयं ही कुछ सीख जाती। रंगमंच कितना प्रभावशाली माध्यम है अभिव्यक्ति का! मैंने इसके द्वारा कितने बच्चों के व्यक्तित्व को बदलते हुए देखा है। जो बच्चे पहले संकोची से होते हैं, धीरे-धीरे इससे जुड़ने के बाद खुलने लगते हैं, अपनी बात को सुंदर ढंग से बताने लगते हैं, दूसरों को समझने लगते हैं। जो पहले अधिक हाथा-पाई करते हुए दिखाई पड़ते हैं, चंचल होते हैं, वे अनुशासन में रहना सीख जाते है।

अभी हाल ही की बात है जिसमें मैं बच्चों को नुक्कड़ नाटक के लिए तैयारी करवा रही थी। सबसे पहले तो बच्चों को खेल करवाए गए जिससे कि उनमें मनोरंजन के साथ सामूहिकता का भाव पैदा हुआ। फिर धीरे-धीरे हमने एक विषय पर काम करना आरम्भ किया। समूह में उन्होंने अपने-अपने विचार रखे और फिर एक खाका तैयार होने लगा। जिसे जो बात रखनी थी, उसे पूरा मौका दिया गया। सबकी कल्पना और सृजनशीलता से एक नाटक बनकर तैयार हुआ। अब आई उसे कार्यान्वित करने की बारी। हर बच्चा आरम्भ में अच्छा अभिनय नहीं करता, लेकिन अंत तक आते-आते सब मिलजुल कर एक सुंदर नाटक प्रस्तुत कर लेते हैं। ऐसा ही कुछ इस बार भी नाटक सिखाने के दौरान हुआ।

इस नुक्कड़ नाटक में एक भाग ऐसा था जिसमें कि ताल और लय का ध्यान रखते हुए एक छोटा सा नृत्य करना था। एक बच्चा समूह में ताल मिलाकर अपने पाँव नहीं चला पा रहा था। उसे यह बात पता चल रही था कि उसकी वजह से पूरे समूह का यह हिस्सा बिगड़ रहा था। पर यह उसके बस में नहीं था। मेरे पूछने पर उसने बताया कि उसने कभी नृत्य नहीं किया है इसलिए उसमें वह खुलकर ताल के साथ ठीक से नृत्य नहीं कर पा रहा। मैं उसकी उस हीन भावना को निकालना चाह रही थी जो कि उसके मन में घर कर गयी कि वह यह नृत्य कभी ठीक से नहीं कर सकता।

मैंने उसी समूह से एक बच्चा बाहर निकाला। उस बच्चे से दूसरे बच्चे को सिखाने के लिए कहा। मैं ओर वे दोनों बच्चे दूसरी कक्षा में चले गए। पहले तो दोनों में झिझक थी लेकिन दोनों फिर सीखने-सिखाने की प्रक्रिया में प्रवेश कर गए। उस लड़के ने पांच मिनट में ही दूसरे बच्चे को उस नृत्य की ताल सिखा दी। जैसे-जैसे वह बच्चा ठीक तरह से पाँव चलाने लगा, उसके चेहरे के भाव बदलते गए। अपने मित्र की सहायता से उसने यह काम बखूबी समझ लिया। अब आई बारी सबके साथ करने की। जैसे ही वह दृश्य आया, वह मेरी तरफ देखने लगा। वह घबरा रहा था कि पता नहीं वह सबके साथ कर पाएगा कि नहीं। मैंने मुस्कराते हुए उसकी आँखों में देखा। वह भी मुस्कुराया। उसने अपने कदम चलाये, उसे अपने ऊपर विश्वास नहीं हुआ कि वह सबके साथ कदम से कदम मिलाकर सुन्दरता से नृत्य कर पा रहा है। वह पूरे समय मेरे और अपने मित्र की ओर देखता रहा। उसके चेहरे पर आत्मविश्वास झलक रहा था। उसकी प्रसन्नता देखते ही बनती थी। हम तीनों एक ऐसी ख़ुशी साझा कर रहे थे जिसका पता समूह में और किसी को नहीं था।

इस नाटक के तैयार होने की पूरी प्रक्रिया में हर बच्चे के व्यक्तित्व में बदलाव आया। वे अपनी बात को स्पष्ट रूप में कहने के लिए सक्षम हो गए थे। समूह में एक ताकत होती है, उन्होंने इस बात को कितनी सहजता से समझ लिया।

अंत में मैं यही कहना चाहूंगी कि हर बच्चा हर गतिविधि में अच्छा नहीं हो सकता, सबकी अपनी क़ाबलियत होती है। बच्चे को कभी भी इस हीन भावना से ग्रसित न होने दें कि यह काम तो तुम्हारे बस का नहीं है। अगर हम सब मिलकर धैर्यपूर्वक प्रयास करें तो सब कुछ संभव हो सकता है। किसी के आत्मविश्वास को तोड़ना आसान है, बनाना मुश्किल है। बच्चे अपने हमउम्र बच्चों से अधिक सीखते हैं अतः ऐसे उपाय निकालें जिससे बच्चे समूह में रहेॱ, एक दूसरे से कुछ अच्छा सीखें। रंगमंच एक ऐसा सशक्त माध्यम है जो बच्चों को एक दूसरे के प्रति संवेदनशील भी बनाता है और समाज में इस वक्त इसी की अत्यधिक आवश्यकता है।

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‘प्रोजेक्ट फ्युएल’ द्वारा हम चाहते हैं कि हमारे देश के गुणी एवं प्रेरक अध्यापकों को स्कूल की सीमा के बाहर भी अपने अनुभव भरे ज्ञान बाँटने का अवसर मिले। इस समूह के निर्माण से ना केवल अध्यापकों को अपनी बात कहने का मंच मिलेगा बल्कि अपनी कक्षाओं से बाहर की दुनिया को भी प्रभावित और जागृत करने की चुनौती पाएंगे। आज यह प्रासंगिक होगा कि हम एक पहल करें हिंदी के लेखकों और पाठकों को जोड़ने की।हम चाहते हैं कि पाठक अपनी बोलचाल की भाषा में कैसी भी हिंदी बोलें पर उनका शब्द भंडार व वाक्य विन्यास सही रहे। हमें उम्मीद है इस सफ़र में साथ जुड़कर अध्यापक बहुत कुछ नई जानकारी देंगे।

इसी श्रंखला में हमने आमंत्रित किया है :
श्रीमती ऊषा छाबड़ा
इनके बारे में और जानने ने लिए इनकी वेबसाइट देखिये: www.ushachhabra.com

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