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“Never stop Dreaming”

किसी भी बहुत बड़े सामाजिक कार्य को करने में प्रेरणा आगे बढ़ने को उत्साहित करती रहती है। मन आशा की डोर से बँधा खिंचता चला जाता है।लक्ष्य दूर है पर विश्वास अडिग है। उस प्रकाश स्तम्भ तक पहुँचने के लिए रुकावटें भी उतनी ही प्रचंड होंगी, जितनी क्षमताएँ अगर सत्य साथ है तो मस्तिष्क उन्हें भेद लेगा और सवेरा अवश्य आएगा।

“Never give up on something you really want. It’s difficult to wait but it’s more difficult to regret.” -PauLo Coelho

एक परिस्थिति वो भी थी जब राजकुमार से मुनि वेश में आए राम, सीता की खोज में दक्षिण में रामेश्वरम पहुँचे। रास्ते भर ना जाने कितने दुखियों के संताप को हरा और दयानिधान, कृपा निधान की उपाधि के साथ आगे बढ़े। प्रकृति के सभी जीव उनके साथ चले। खग, मृग, भालू, वानर आदि प्रजातियाँ सभी किसी ना किसी capacity में साथ हो गए अंत में जब श्री लंका तक सेतु बनाने की बारी आयी तो नल-नील नामक सुग्रीव के पुत्रों ने समुद्र में सेतु बाँधने का कार्य शुरू किया। सबसे पहले जंगल से लाकर बड़े- बड़े वृक्षों के तने पानी में डाले गए जो पानी पर तैर गए।उन पर ऐसे पत्थर बिछाए गए जो वहीं जम गए और फ़्लोट करते थे। उनके ऊपर तटीय रेत बिछायी गयी। आज भी दस हज़ार साल बाद भी हम इस पुल की संरचना fossil रूप में देखते हैं। इतना विराट संयोजन सभी जीवों के अथक प्रयास से हुआ, जिनमें गिलहरियों के मुँह में रेत लाने का वर्णन भी मिलता है। मानव का प्रकृति के साथ अनोखा सम्बन्ध स्थापित हुआ।

“You are a product of your environment- choose yours carefully. Surround yourself with the doers, the believers,the dreamers and the thinkers.Only they will lift you higher.”

इसी प्रकार सन 1964 में palk strait स्थित Pamban island को जोड़ने वाला एकमात्र समुद्री ब्रिज तूफ़ान आने से ध्वस्त हो गया। इसे १९११ में बनाना आरम्भ किया गया था और १९१४ में आवागमन के लिए खोला गया था। सन १९६४ में तूफ़ान आने के बाद छह महीने का वक़्त देकर रेलवे मिनिस्ट्री ने मेट्रो मेन श्री ई श्रीधरन को इसे दुबारा बनाने का कार्य सौंपा। अब इसमें बहुत भारी girders डालने की ज़रूरत थी railway cranes लायी नहीं जा सकती थीं। सभी सड़कें टूटी हुई थीं और उन्हें बनाने में कई महीने लग सकते थे। इंजीनियर साहेब और गाँव वालों ने मिलकर ये बीड़ा उठाया और सौ साल पुरानी तकनीक से बड़े-बड़े गर्डर डालकर ब्रिज खड़ा किया वो भी सिर्फ़ ४६ दिन में। यह कैसे सम्भव हुआ..? क्यूँकि सभी ग्रामीणों को हौसला था और विश्वास था अपने इंजीनियर साहेब पर। अपनी सौ साल पुरानी तकनीक पर जिसमें हाथियों, बैल गाड़ियों और ट्रैक्टर्ज़ की सहायता ली गई थी।

जब दिल में उमंग और उत्साह लिए हम किसी बड़ी योजना को साकार करने चलें तो प्रकृति स्वयं साथ देती है।

When you want something all the universe conspires in helping you to achieve it- Paulo Coelho

विश्वास अडिग रखो।

वो शक्ति जिसने तुम्हारे मन में विचार का अंकुर उत्पन्न किया उसे वृक्ष बनता देखना चाहती है। वही उसे सींचेगी भी। सबको साथ लेकर चलो सबके आंशिक सहयोग का आदर करो। आगे बढ़ो भविष्य तुम्हारे साथ है।

“Your story may not have such a happy beginning but that doesn’t make you who you are it is the rest of your story, who you choose to be—-“- Alchemist

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About The Author

बचपन से प्रकृति की गोद में पली-बढ़ी श्रद्धा बक्शी कवि और कलाकार पिता की कलाकृतियों और कविताओं में रमी रहीं। साहित्य में प्रेम सहज ही जागृत हो गया। अभिरुचि इतनी बढ़ी कि विद्यालय में पढ़ाने लगीं। छात्रों से आत्मीयता इतनी बढ़ी कि भावी पीढ़ी अपना भविष्य लगने लगी। फ़ौजी पति ने हमेशा उत्साह बढ़ाया और भरपूर सहयोग दिया। लिखने का शौक़ विरासत में मिला जो नए कलेवर में आपके सामने है......

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