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रॉयल एन्फ़ील्ड की धमक सुन मैं उछलकर फ़ुटपाथ पर चढ़ गयी। कनखियों से देखा तो studs का भारी हेलमेट उतरा और चमकीले काले बाल उसके कंधों पर बिखर गए, अद्भुत फ़िल्मी सीन था। तीखे नैन नक्शोंवाली नवयुवती कंधे पर पीछे बैग उछालकर सामने की बिल्डिंग में गुम हो गयी, और मैं उसकी मोबाइक ही देखकर भावुक हो उठी। अपनी पुरानी Yezdi UTL 4143 याद आ गयी जिस पर हमने भी कभी gear बदल-बदल कर हवा से बातें की थीं। मेरे मन में कौतुहल जगा कि इस बच्ची से मिलना चाहिए, कहाँ रहती है? क्या करती है?

दूसरे दिन society के बाहर लगी मंडी में हम सब्ज़ियों की ताज़गी आंक रहे थे कि तभी उसी बाइक की धमक गूँजी और पीछे मुड़कर देखने पर सिर्फ़ ग़ुबार ही दिखा। तीसरे दिन याद से मैंने सामने वाली बिल्डिंग में अपनी एक मित्र को फ़ोन लगाया और पूछा तुम उस बाइक चलाने वाली बच्ची को जानती हो? उसने पूछा कौन? वही जो रॉयलएंफ़ील्ड चलाती है। उसने फिर पूछा तुम क्यूँ जानना चाहती हो? मैंने कहा,”देखो,अभी तक तो मैं ही अपने को फन्ने खॉं समझती थी। अपना बचपन किसी में दिखायी दिया इसलिए पूछ रही हूँ।” वो हँस पड़ी और कुछ बोली नहीं। मुझे अगले दिन चाय पर आमंत्रित किया। बोली,”शाम ६बजे तक आना तब तक वो भी आ जाएगी। मेरे घर पर ही मिल लेना।” अगले दिन जब मैं उसके घर गयी तो मेरी मित्र अपने क्लीनिक से आ चुकी थी। हमारी औपचारिक बातें हो रही थीं कि तभी एक बहुत ही प्रभावशाली आँखोंवाली बच्ची कॉफ़ी भरे मग्ज़ लिए आ गयी। मेरी मित्र ने बताया,”यह मेरी बेटी मंजुल है।” मैंने बहुत ही casually उससे बात करनी शुरू कर दी। कहाँ पढ़ रही हो? मुझे ज़रा भी इल्म नहीं हुआ ये वही बच्ची है, अब मेरी मित्र समझ गयी। मुझसे बोली,”कल तुमने जिससे मिलने की बात की थी ये वही है।” मुझे ज़बरदस्त झटका लगा। कहाँ ये मासूम कमज़ोर सी बच्ची और कहाँ कल इतनी भारी बाइक सम्हाले ऐंकल शूज़ से लैस युवती। मेरी आँखों में अविश्वास देख दोनों ही मॉं बेटी हँसने लगीं। “तुम्हें बाइक का शौक़ कैसे हुआ?” देखिए आंटी, शुरु-शुरु में मुझे सबसे कुछ हट के करना था। एक दोस्त की बाइक चलाई तो लगा this is it. बस उसी दिन फ़ैसला कर लिया।””चलिए aunty, आपको बाइक पे घुमाकर लाती हूँ।” “ना – ना बेटे बाइक का शौक़ मुझे भी बहुत रहा है, चलायी भी है। तुम्हें देख अपना बचपन याद आ गया। अब अपने बारे में बताओ क्या-क्या करती हो?

Aunty, मेरा नाम मंजुल प्रतीति है नो surnames पापा इसपर विश्वास नहीं करते। मैं बच्चों को आउट्डोर ऐक्टिविटीज़ सिखाती हूँ। उनमें उत्साह और साहस भरती हूँ ताकि ज़िंदगी जीने के नए तरीक़े सीखें। इसके लिए हम उन्हें घर से दूर camps का जीवन जीना सिखाते हैं। मैं २०१० से ऐसे कार्यक्रमों से जुड़ी हुई हूँ। मैं ख़ुद बहुत यात्राएँ करती हूँ और गेम्ज़ में भी बहुत रुचि है।

मैंने पूछा,”आज के ज़माने के बच्चे तो MBA और MNC की बातें करते हैं। तुम्हें कैसे लगा कि इस तरह की ऐक्टिविटीज़ में भी कैरियर लिया जा सकता है?”

“मुझे बचपन से ही घर में कैम्पिंग, picnics, ट्रेकिंग का माहौल मिला था ।तभी कहीं मन में बैठ गया था कि जीना इसी का नाम है ,बड़े होने पर जब मैंने फ़ैसला किया कि बाइक ख़रीदनी है तो सबने ताली बजाकर इस निर्णय का स्वागत किया था।”
“तुमने इन गतिविधियों से क्या सीखा और बच्चों को क्या सिखा पायीं?”

एक जो मुझे सबसे सुखद अनुभव मिला कि आउट्डोर के माध्यम से हम बच्चों को कम से कम सुविधाओं के बीच जीना सिखा पाए। प्राकृतिक आपदाओं से जूझना सिखा पाए, जिससे वे समाज के प्रति ज़िम्मेदारी समझ सकें। एक अच्छा इंसान बन सकें ।

एक बार हम बच्चों को लेकर अमेरिका गए। जहाँ हमने Great American bike ride cycling expedition किया। हमने Seatle से लेकर San Francisco तक साइक्लिंग की तक़रीबन 1000 miles. बच्चे 14-17 वर्ष तक के थे और बहुत हिम्मती और असीमित ऊर्जा से भरे। इस एक्स्पिडिशन में बच्चों ने अपनी क्षमता को भरपूर पहचाना। एक दिन खाने की मेज़ पर सबने माना कि Oregon में एक दिन 4.8 miles खड़ी चढ़ाई चढ़ने की किसी की भी हिम्मत नहीं हो रही थी। कुछ को तो लग रहा था कि एक्स्पिडिशन यहीं छोड़कर भाग जाएँ। एक-एक पैडल मारना बहुत भारी लग रहा था कि दम है ही नहीं तो कहाँ से लगाएँ? साइकल्ज़ किसी तरह घिसट रही थीं हम ख़ुद को भी बहुत push कर रहे थे, पर साथ ही साथ एक दूसरे को हिम्मत बंधा रहे थे। दोस्त, बस एक पैडल और, एक पैडल और, एक और करते-करते उस स्थान तक पहुँच ही गए जहाँ आराम गृह था।

शारीरिक थकावट के इस बिंदु तक पहुँच कर बच्चों को पता चला कि मस्तिष्क, मेहनत और ध्यान जब एक लय से चलते हैं तो मनुष्य बड़े से बड़े पर्वत लाँघ सकता है।

Your mind ,body and concentration should be in sync with each other.

हम सभी में ऐसी अदृश्य शक्ति होती है जो समय आने पर अपना कार्य करती है। उसका सही दिशा में उपयोग करना आना चाहिए। इसी तरह कुछ बच्चों ने सीखा कि प्रोत्साहित करने के लिए सही समय पर मित्रों का होना बहुत ज़रूरी है। अच्छे मित्र आपको कड़ी कठिनाइयों से निकालने में मदद करते हैं।

बहुत ख़ूब मंजुल प्रतीति हमारे देश को तुम जैसी साहसी टीचर्ज़ और mentors की बहुत आवश्यकता है। जो अानेवाली पीढ़ी की मार्ग दर्शक बन सकें और चुनौतियों से लड़ना सिखा सकें। किताबी पढ़ाई से परे भी बहुत कुछ है संसार में सीखने के लिए, बस प्रबल इच्छा शक्ति की ज़रूरत है।

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बचपन से प्रकृति की गोद में पली-बढ़ी श्रद्धा बक्शी कवि और कलाकार पिता की कलाकृतियों और कविताओं में रमी रहीं। साहित्य में प्रेम सहज ही जागृत हो गया। अभिरुचि इतनी बढ़ी कि विद्यालय में पढ़ाने लगीं। छात्रों से आत्मीयता इतनी बढ़ी कि भावी पीढ़ी अपना भविष्य लगने लगी। फ़ौजी पति ने हमेशा उत्साह बढ़ाया और भरपूर सहयोग दिया। लिखने का शौक़ विरासत में मिला जो नए कलेवर में आपके सामने है......

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